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गार्डेनिंग का शौक रखने वालों के बीच कैक्टस बहुत तेजी से लोकप्रिय हुए हैं। लेकिन, ये सिर्फ सजाने के ही काम नहीं आते। वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. एसपी कटियार बताते हैं कि कैक्टस का हर हिस्सा काम में आता है। जड़ से आयुर्वेदिक दवाएं बनती हैं। इसकी कई ऐसी प्रजातियां हैं, जिनके फल, फूल और गूदे को खा सकते हैं। उससे सब्जी, शरबत और सलाद भी बना सकते हैं। कांटों भरे इन पौधों का इतिहास करोड़ों साल पुराना है। अमेरिका के यूटा में कैक्टस के 5 करोड़ साल पुराने जीवाश्म मिल चुके हैं। हिंदी में इसे नागफनी कहते हैं। इसके कांटें इतने मजबूत होते हैं कि संस्कृत में इसका नाम ही वज्रकंटका रख दिया गया। इन कांटों से ही पहले बच्चों के कान छेदे जाते थे। माना जाता था कि कैक्टस के कांटों से छेदने पर कान पकते नहीं। आयुर्वेद के मुताबिक लाल-पीले नागफनी के फूलों को उबालकर खाने से बुखार उतर जाता है। पुरुषों की प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ जाए तो वैद्य दूसरी दवाओं के साथ इन फूलों के पाउडर यानी चूर्ण का सेवन करने की सलाह भी देते हैं। इन दिनों ड्रैगन फ्रूट भी ट्रेंड में है और हर तरफ इसके फायदे बताए जा रहे हैं। ड्रैगन फ्रूट भी कैक्टस की एक वैरायटी ‘हिलोसेरियस‘ का फल है। इसी तरह, प्रिकली पियर कैक्टस, पेरूवियन एपल, क्वीन ऑफ द नाइट, बैरल कैक्टस, मून और बिहाइव कैक्टस जैसी कैक्टस की कई प्रजातियों को खाया जा सकता है। नागफनी के फल एंटीऑक्सिडेंट्स, आयरन, बीटा कैरोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम और कई तरह के विटामिंस से भरपूर होते हैं। कैक्टस के रसीले फलों को कच्चा भी खा सकते हैं और इनसे स्मूदी, जूस, शरबत समेत कई तरह के व्यंजन भी बना सकते हैं। बवासीर, खून की कमी, मोटापे जैसी कई समस्याओं में ये फल बहुत फायदेमंद माने जाते हैं। इसके जूस में 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सर्दी, जुकाम और खांसी में राहत मिलती है। ल्यूकोरिया और गोनोरिया जैसी बीमारियों में भी ये फल फायदेमंद माने जाते हैं। एल्कोहल के हैंगओवर से परेशान हों तो इसके फल खाने से राहत मिल सकती है गठिया और पुरानी चोट में नागफनी की जड़, पत्ते फायदेमंद जोड़ों के दर्द, पुरानी चोट और सूजन की समस्या है, तो नागफनी के पत्ते से कांटें निकालें, फिर गूदे वाले हिस्से पर सरसों का तेल और हल्दी लगाकर गर्म करके बांधने से कुछ ही घंटों में आराम मिलता है। इसकी जड़ के साथ मेथी, अजवायन, सोंठ का काढ़ा बनाकर पीना गठिया और सूजन में फायदेमंद है। नागफनी कैक्टस में मिलने वाले पोषक तत्व शरीर में खून बनने की प्रक्रिया तेज करते हैं और बैक्टीरिया से बचाते हैं। इसलिए इसे पीलिया और एनीमिया जैसी बीमारियों में फायदेमंद माना जाता है। नागफनी पाचन क्षमता को सुधारती है और आंतों को मजबूत बनाती है। इसे खाने से कब्ज और अल्सर से भी राहत मिलती है। इसमें मौजूद पोषक तत्व ब्लडप्रेशर, ब्लडशुगर और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से इसे दिल के लिए भी गुणकारी माना जाता है और दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। नागफनी में भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। इसके सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट्स शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालते हैं, कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकते हैं। साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। फेफड़ों और मुंह के कैंसर से बचाने के लिए कैक्टस को बहुत असरदार माना जाता है। नींद से जुड़ी समस्याओं, माइग्रेन और दमा में भी नागफनी को काफी कारगर माना जाता है। इसके फल को सुखाकर उसका काढ़ा पीने से दमा की बीमारी दूर होती है। एलोवेरा के फेसपैक के फायदे तो सब जानते हैं, लेकिन कैक्टस का फेसपैक उससे भी ज्यादा फायदेमंद है। इसमें मौजूद विटामिन-ए स्किन को हेल्दी बनाता है। यह अल्ट्रावॉयलेट किरणों और कई त्वचा रोगों से बचाने में भी यह मददगार है। इस फेसपैक से ड्राई स्किन हट जाती है, टैनिंग, पिंपल्स, झुर्रियों में भी यह फायदेमंद है। नियमित तौर पर इसके इस्तेमाल से स्किन टाइट हो जाती है और त्वचा नम, मुलायम और ताजी बनी रहती है। हालांकि, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादा मात्रा में नागफनी का सेवन करने से किडनी स्टोन और पेट दर्द, गैस की समस्या हो सकती है। जिन्हें डायबिटीज, एलर्जी या फिर कोई और स्वास्थ्य समस्या है, वे इसके इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
केवड़ा है दुनिया का सबसे खुशबूदार फूल
केवड़ा के फूल की गिनती दुनिया के सबसे खुशबूदार फूलों में होती है। ये सिर्फ एक फूल या फसल नहीं है बल्कि एक आयुर्वेदिक औषधी भी है। घने जंगलों में उगने और मनमोहक खुशबू के लिए ‘फूलों का राजा‘ भी कहते हैं जो उड़ीसा के गंजम में उगाया जा रहा है। केवड़ा की खेती बेहद कम जगहों पर की जाती है, लेकिन पूरी दुनिया में इसकी डिमांड रहती है। इससे ही ज्यादातर फ्यूम, सेंट, इत्र और तमाम ब्यूटी प्रोडक्ट्स और यहां तक कि मिठाई और फूड प्रोडक्ट्स में भी केवड़ा का इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो ये फूल समुद्र किनारे वाले इलाकों, नदी, तालाब और दूसरे जल स्रोतों के किनारे ही उगता है, लेकिन देश के मैदानी इलाकों में भी कई किसान इसकी खेती कर रहे हैं। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लेकर फेंफड़ों की जलन, यूरिन डिजीज, हार्ट डिजीज, कान के रोग, खून के रोग, सिर दर्द, त्वचा रोग और और पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए केवड़ा वरदान है। तभी तो केवड़ा से केवड़ा जल बनाकर मिठाई, सिरप, शरबत और कोल्ड ड्रिंक्स में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। ये तनाव और दूसरे मानसिक रोगों में भी काफी हद तक राहत प्रदान करता है। जहां इसके फूल की प्रोसेसिंग करके तेल, अर्क और जल बनाया जाता है तो वहीं इसकी पत्तियां झोपड़ियों को ढ़कने, चटाई तैयार करने, टोप, टोकनियों और कागज बनाने के काम के काम आती है। इसकी लंबी जड़ों के रेशे का इस्तेमाल भी रस्सी और टोकरियां बनाने के लिए किया जाता है। केवड़ा के पतले, लंबे, घने और कांटेदार पत्तों वाले पेड़ की दो प्रजातियां होती हैं, एक पीला और दूसरा सफेद। पीली किस्म को केवड़ा कहते हैं, जबकि सफेद को केतकी के नाम से जानते हैं। केतकी में ज्यादा खुशबू होती है। इसके कोमल पत्तों का इस्तेमाल भी औषधी के तौर पर किया जाता है। केवड़ा के बीज-पौधों की बुवाई रोपाई करने के बाद जनवरी-फरवरी तक फूल आना चालू हो जाते हैं। केवड़ा की फसल में खरपतवार नहीं उगते, जिससे निराई-गुड़ाई की मेहनत बच जाती है। अगर आपके इलाके में अच्छी बारिश होती है तो सिंचाई भी बचा सकते हैं। यही वजह है कि जल स्रोतों के आस-पास ही केवड़ा की खेती करने की सलाह दी जाती है। इन दिनों नमामि गंगे मिशन के तहत गंगा किनारे पड़ी खाली जगहों पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस अवसर का लाभ लेकर केवड़ा की खेती चालू कर सकते हैं। भारत में उड़ीसा के गंजम जिले को केवड़ा का सबसे बड़ा उत्पादन मानते हैं। यहां ज्यादातर नदी, नहर खेत और तालाबों के आस-पास केवड़ा-केतकी की खेती की जाती है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और अंडमान द्वीप पर भी केवड़ा-केतकी की खेती होती है। दक्षिण पूर्वी भारत से लेकर ताईवान, दक्षिणी जापान और दक्षिणी इंडोनेशिया तक केवड़ा उगया जाता है।
देसी और हाइब्रिड टमाटर में अंतर
अगर आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है तो टमाटर को सब्जियों का सेनापति कहा जा सकता है। टमाटर जिस सब्जी में पड़ जाए उसके स्वाद में चार चांद लग जाते हैं। सलाद से लेकर सूप तक में टमाटर का खूब इस्तेमाल होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में टमाटर की दो किस्में मिलती हैं? बाजार से आप जो टमाटर घर लेकर आए हैं वो देसी है या फिर हाइब्रिड इसकी पहचान कैसे करेंगे? देसी टमाटर देखने में गोल और रसीले नजर आते हैं, इसके साथ ही देशी टमाटर खाने में स्वादिष्ट और पौस्टिक होते हैं। देसी टमाटर का स्वाद हल्का खट्टा होता है। इसका रंग गहरा लाल ना होकर हल्का हरा और हल्का पीला होता है। देसी टमाटर आपको देखने में लगेगा कि अभी कच्चा है, लेकिन असल में अंदर से यह पक चुका होता है। हाइब्रिड टमाटर सुर्ख लाल और टाइट होते हैं। इन्हें आप हाथ में लेगें तो आपको महसूस होगा जैसे इनमें कोई रस नहीं है। इन टमाटरों का स्वाद भी बिल्कुल फीका होता है, हालांकि ये ज्यादा दिनों तक चल जाते हैं। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखें तो यह टमाटर हमारे लिए हानिकारक हैं क्योंकि इसे उगाने के लिए तमाम तरह की दवाईयों का इस्तेमाल होता है। देसी टमाटरों की मार्केट में डिमांड हाइब्रिड टमाटरों से ज्यादा होती है। इसके पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला कारण है स्वाद। देसी टमाटरों में जो स्वाद होता है वह हाइब्रिड टमाटरों में नहीं मिलता। आप सब्जी में एक देसी टमाटर डाल दें, वह कई हाइब्रिड टमाटरों से ज्यादा स्वाद देगा। दूसरी सबसे बड़ी वजह है, देसी टमाटर स्वास्थ के लिए फायदेमंद होते हैं। यही वजह है कि डॉक्टर भी देसी और ऑर्गेनिक टमाटरों को खाने की सलाह देते हैं। देसी टमाटरों के ज्यादा डिमांड की तीसरी सबसे बड़ी वजह है कीमत। देसी टमाटर, हाइब्रिड टमाटरों की अपेक्षा ज्यादा सस्ते होते हैं। देसी टमाटर में भी 6 किस्में पाई जाती हैं। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के दो वैज्ञानिकों ने टमाटर की 6 देसी किस्मों को इजाद किया था. ये 6 किस्में हैं- काशी अमृत, काशी विशेष, काशी हेमंत, काशी शरद, काशी अनुपम और काशी अभिमा। छत्तीसगढ़, ओड़िसा, आंध्रप्रदेश और एमपी के किसान काशी हेमंत को उगाना पसंद करते हैं, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों की पहली पसंद काशी शरद है। जबकि, गरम जलवायु के क्षेत्र माने जाने वाले हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के किसान काशी अनुपम को अपनी पहली पसंद मानते हैं। काशी विशेष टमाटर एक ऐसी किस्म है, जो हर जगह उगाई जा सकती है।
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Tree TakeJan 19, 2025 04:26 PM
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