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सिर्फ संरक्षित जंगलों में ही नहीं, गोण्डा में भी हैं विभिन्न प्रकार के वन्यजीव

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सिर्फ संरक्षित जंगलों में ही नहीं, गोण्डा में भी हैं विभिन्न प्रकार के वन्यजीव

यहां पर अच्छी तादात में स्पॉटेड डियर (चीतल), हॉग डियर(पाढ़ा), बर्किंग डियर, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर जैसे प्राणी टेढ़ी नदी और सरयू नदी के कछारों में मौजूद घास के मैदानों में, टिकरी जंगल में, बिशुही और कुआनो नदी के किनारे अच्छी तादात में पाए जाते हैं...

सिर्फ संरक्षित जंगलों में ही नहीं, गोण्डा में भी हैं विभिन्न प्रकार के वन्यजीव

Specialist's Corner
अभिषेक दुबे, पर्यावरण एवं पशु अधिकार कार्यकर्ता, नेचर क्लब फाउंडेशन, गोण्डा
वैसे तो गोण्डा जिले में कोई नेशनल पार्क या वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी नहीं है लेकिन यहां पर विभिन्न प्रकार के वन्यजीव बड़ी अच्छी तादात में रहते हैं जिनके पर्यावास नदियों के किनारे, छोटे बिखरे हुए जंगलों में, इंसानों के बीच मौजूद हैं। चाहे बड़े स्तनधारी प्राणी हो या सरीसृप हों, पक्षी हो या जलीय जीव हो यह सभी गोण्डा जिले में अच्छी संख्या में मौजूद है परंतु यहां पर वन विभाग में सिर्फ सामाजिक वानिकी होने, वन्य जीव विभाग न होने के कारण, उनके पर्यावास का और उनका उचित संरक्षण नहीं हो पा रहा और वे सभी अत्यधिक मानव दबाव के कारण तेजी से नष्ट होते जा रहे हैं। गोण्डा जिले में कई छोटी नदियां हैं जिनके किनारे अच्छे घास के मैदान हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के हिरण, छोटे स्तनपाई पाए जाते हैं। गांव-गांव में फैले छोटे घास के मैदानों, झाड़ियों, जंगलों में विभिन्न प्रकार के सांप पाए जाते हैं। गोण्डा के सैकड़ो वेटलैंड्स में और नदियों में विभिन्न प्रजातियों के कछुए और घाघरा नदी में गंगेय डॉल्फिन, घड़ियाल, मगरमच्छ आदि जीव पाए जाते हैं। इस लेख में हम बात करेंगे उन प्रमुख वन्यजीवों की और उनके पर्यावासों की जो संरक्षण से काफी दूर इस जिले में अच्छी तादाद में होकर इसे जैवविविधता से काफी समृद्ध बनाते हैं।
स्थानीय स्तनपाई: यहां पर अच्छी तादात में स्पॉटेड डियर (चीतल), हॉग डियर(पाढ़ा), बर्किंग डियर, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर जैसे प्राणी टेढ़ी नदी और सरयू नदी के कछारों में मौजूद घास के मैदानों में, टिकरी जंगल में, बिशुही और कुआनो नदी के किनारे मौजूद जंगलों में और विभिन्न प्रकार के झीलों के किनारे मौजूद घास के मैदानों में अच्छी तादात में पाए जाते हैं हालांकि इनकी संख्या और इनका पर्यावास दिनों-दिन नष्ट होता जा रहा है। इनमें से हॉग डियर एक संकटग्रस्त प्रजाति है जिनकी संख्या पूरे भारत में हजारों में मात्र है लेकिन ये गोण्डा जिले में भी अच्छी संख्या में मौजूद हैं। छोटे जंगलों और गांवों में जंगल कैट, लंगूर भी पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त घाघरा नदी के कछारों में इंडियन ग्रे वुल्फ अर्थात भारतीय भेड़िए भी कुछ स्थानों पर वास करते हैं और विभिन्न नदियों के कछार में आज भी कुछ संख्या में लोमड़ी भी दिख जाती है। इसके अतिरिक्त सियार, लम्हा आदि अच्छी तादात में गांव-गांव में पाए जाते हैं। आज से दो-तीन दशक पहले तक भेड़िए टेढ़ी नदी के कछार में बहुतायत में पाए जाते थे और आज भी टेढ़ी नदी के किनारे गांव में भेड़िए जिन्हें स्थानीय भाषा में बिगवा या भेड़हा कहा जाता है, के द्वारा बकरियां और बच्चे उठा ले जाने के संस्मरण और कहानियां बुजुर्ग सुनाते हैं। छोटे स्तनधारी प्राणियों में इंडियन क्रेस्टेड पॉर्क्युपाइन (साही), एशियन पॉम शिवेट (बिज्जू), नेवले आदि भी गोण्डा के गांवों में अच्छी तादात में मौजूद हैं। इन तमाम प्राणियों के पर्यावास अधिकांशतः लोगों के कृषि भूमि के रूप में दर्ज है अथवा कृषि भूमि के किनारे हैं इसलिए किसान खेती के लिए, छप्पर आदि के लिए, चूल्हा जलाने के लिए और मवेशियों की चराई के लिए घास के मैदान के रूप में मौजूद इन विशेष पर्यावासों को तेजी से नष्ट कर रहे हैं और फिर उसमें रहने वाले यह जीव खत्म होते जा रहे हैं। 
स्थलीय सरीसृपः सरीसृपों में सांपों की विभिन्न प्रजातियां भी गोण्डा में बहुतायत में पाई जाती हैं जिनमें प्रमुख रूप से इंडियन रॉक पाइथन (भारतीय अजगर), इंडियन स्पेक्टकल्ड कोबरा (भारतीय नाग), रशेल वाइपर, कॉमन करैत, कॉमन सैंड बोआ, ओरिएंटल रैट स्नेक (धामन), कॉमन वुल्फ स्नेक, चेकर्ड कीलबैक (पानी वाला सांप ध् मजगिधवा), बफ स्ट्राइप्ड कीलबैक (स्थानीय भाषा में डोंड़हा), कॉमन कैट स्नेक आदि आदि पाई जाती हैं। इसके साथ ही दो तरह के गोह येलो मॉनिटर लिजर्ड और बंगाल मॉनिटर लिजर्ड जिन्हें स्थानीय लोग अक्सर बिचखोपड़ा कहते हैं, भी अच्छी तादात में पाए जाते हैं। मानव आबादी के आसपास रहने वाले इन वन्यजीवों का पर्यावास, भोजन की उपलब्धता भी घट रही है और साथ ही विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास और जागरूकता के अभाव में लोग इन्हें मारते भी हैं जिससे ग्रामीण परिवेश के जैवतंत्र में काफी नुकसान पहुंचा है। गोण्डा जनपद और आसपास के क्षेत्र में कॉमन वुल्फ स्नेक को लोग चीतर कहकर और अत्यधिक विषधर समझकर देखते ही मार देते हैं जबकि असलियत यह है कि यह सांप पूर्णतः विषहीन होता है। ऐसे ही मॉनिटर लिजर्ड को भी लोग विषधर मानते हैं, उन्हें बिचखोपड़ा कहते हैं और मार देते हैं। धामिन से जुड़ा भी अंधविश्वास है कि उसकी पूंछ में जहर होता है और यदि उसकी पूछ हमारे किसी अंग से छू जाए तो हमारा अंग सड़ जाएगा। 
जलीय सरीसृपः जलीय सरीसृपों में कछुए भी अच्छी तादात में गोंडा के झीलों और नदियों में पाए जाते हैं। बहराइच से निकलकर गोंडा के पस्का में घाघरा में विलय करने वाली सरयू नदी में करीब 10 प्रजातियों के कछुए पाए जाते हैं जो सभी प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। इन कछुओं के संरक्षण के लिए सरयू नदी के एक हिस्से में अच्छा प्रयास किया गया है जिसके तहत पहले जिला प्रशासन ने कछुओं के एक प्रमुख प्रजनन स्थल में मत्स्य आखेट का पट्टा निरस्त किया और फिर वन प्रभाग गोण्डा और कछुओं पर शोध करने वाली संस्था टीएसए इंडिया के प्रयासों से उक्त प्रजनन स्थल को एक कम्युनिटी रिजर्व बनाने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है। कछुओं का चोरी-छिपे होने वाला शिकार जो प्रमुख रूप से उन्हें दक्षिण एशियाई देशों में बेचने के लिए, स्थानीय समुदायों के द्वारा खाने के लिए और एक्वेरियम में रखने के लिए किया जाता है, और विभिन्न प्रकार के उनके जलीय पर्यावास में समस्याएं कछुओं की अस्तित्व के सामने बड़ा संकट बनी हुई हैं। हालांकि बढ़ी जनजागरूकता और कानून के डर से अवैध शिकार में कमी आई है।
अन्य जलीय वन्यजीव: अन्य जलीय वन्यजीवों में गोण्डा के दक्षिणी सीमा से होकर बहने वाली घाघरा नदी में अच्छी तादात में गंगेय डॉल्फिन, घड़ियाल और कहीं कहीं मगरमच्छ भी पाए जाते हैं और वन विभाग के द्वारा चलाए जा रहे इनके प्रजनन और पुनर्वास के कार्यक्रमों के फलस्वरूप घाघरा नदी में इनकी संख्या बढ़ी है और साथ ही जनजागरूकता के कारण उनका शिकार भी रुका है। इसके साथ ही गोण्डा की विभिन्न नदियों और तालाबों में विभिन्न प्रजाति की देशी (स्थानीय) मछलियों की भी प्रजातियां पाई जाती हैं जिनकी तादात बड़ी तेजी से घटी है जिसका प्रमुख कारण हाइब्रिड और विदेशी मछलियों का इन तालाबों में पालन और अत्यधिक शिकार है। स्थानीय प्रजाति की मछलियां भी यहां के जलीय जैवतंत्र के लिए एक आवश्यक घटक होती हैं और तकनीकी रूप से उन्हें भी जलीय वन्यजीव ही कहा जाना चाहिए। 
स्थानीय और प्रवासी पक्षी: पक्षियों के मामले में भी गोण्डा जनपद काफी समृद्ध रहा है। गोण्डा जनपद के विभिन्न वेटलैंड में न सिर्फ दर्जनों प्रजातियों की प्रवासी पक्षियों की अच्छी आमद होती है बल्कि यहां के छोटे जंगलों, गांव में स्थानीय पक्षी भी अच्छी तादात में पाए जाते हैं। प्रवासी पक्षियों के लिए गोण्डा में सैकड़ो वेटलैंड है परंतु पिछले कुछ वर्षों में अधिकांश वेटलैंड में प्रवासी पक्षियों का आना बंद हुआ है। इसके विभिन्न कारण जैसे वेटलैंड का आक्रांता प्रजातियों से प्रभावित होना, मत्स्य पालन, प्रदूषण, पानी की कमी, अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप आदि प्रमुख हैं। हालांकि गोण्डा जनपद में एकमात्र संरक्षित सेंचुरी जो कि पार्वती-अरगा बर्ड सेंचुरी है, और एक रामसर साइट भी है, के संरक्षण के प्रयास हुए हैं। इसके अतिरिक्त गोण्डा के अर्थानी ताल, पथरी झील में भी वर्षों से और आज भी प्रवासी पक्षी अच्छी तादात में आते हैं। इस वर्ष गोण्डा शहर के भुतहा ताल में भी बड़ी अच्छी तादात में प्रवासी पक्षी पहुंचे। इसके साथ ही हिमालय ग्रिफिन वल्चर (हिमालयी गिद्ध) भी हर साल सर्दियों में हिमालय से दक्षिण की ओर गोण्डा जिले में अच्छी तादात में आते हैं। स्थानीय पक्षियों में इजिप्शियन वल्चर (सफेद गिद्ध) यहां बहुतायत में पाए जाते हैं। गोण्डा शहर के किनारे नगर पालिका के कूड़ा डंप करने के स्थान पर इजिप्शियन वल्चर की संख्या हमने बीते कुछ वर्ष पहले 500 तक गिना है लेकिन अब लैंडफिल के तरीकों में हो रहा है बदलाव के कारण इनकी संख्या यहां भी काफी घटी है। अन्य पक्षियों में सारस, एशियन ओपनबिल स्टार्क, विभिन्न प्रजातियों के उल्लू, बाज, चील आदि भी अच्छी तादात में यहां पाए जाते हैं। स्थानीय पक्षियों की सबसे अच्छी विविधता हमें कुआंनो के जंगलों में दिखाई दी। 
अतः आज गोण्डा में यह बड़ी आवश्यकता है कि यहां सामाजिक वानिकी से बढ़कर वन्यजीव विभाग भी बने जो नदियों के किनारे, गांव में आदि राजस्व विभाग के क्षेत्र में भी वन्यजीव और उनके पर्यावासों का संरक्षण सुनिश्चित कराएं अन्यथा जल्दी ही यह सभी वन्यजीव यहां से खत्म हो जाएंगे और फिर यह सिर्फ जंगलों, कहानियों, और तस्वीरों का हिस्सा मात्र रहेंगे और इसके कारण होने वाले जैवविविधता विनाश से प्राकृतिक असंतुलन और ज्यादा बढ़ेगा जो हमारे अपने जीवन के लिए घातक सिद्ध होगा। यह तमाम वन्यजीव हमारे आसपास जैवतंत्र को संतुलित रखकर प्रकृति के आवश्यक चक्र में अपना योगदान देते हैं जिससे जीवन के लिए आवश्यक सुविधाएं जैसे प्रदूषण का शमन, पानी की उपलब्धता, मिट्टी की उर्वरता, प्राणियों का एक-दूसरे पर नियंत्रण आदि हो पता है और हमें खाना, पानी, शुद्ध हवा, नियंत्रित तापमान प्रकृति दे पाती है। जैवविविधता का विनाश आज धरती की सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है जो आज आपातकालीन दौर में पहुंच चुकी है तो धरती पर जैवविविधता को बचाने की मुहिम में गोण्डा जनपद की जैवविविधता का भी संरक्षण नितांत आवश्यक है जिसमें शासन, प्रशासन, संगठनों और सभी व्यक्तियों की भागीदारी जरूरी है।

 

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