Thinking Point
संजय कुमार भाभूसे,
उप निदेशक, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, पटना, बिहार
बिहार में लगभग 4500 आर्द्रभूमि खंड हैं। इनमें बेगूसराय जिले में कंवर झील और जमुई जिले के नकटी एवं नागी पक्षी अभयारण्य रामसर सम्मेलन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व के नवीनतम आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित हैं। तीन आर्द्रभूमि उदयपुर झील (बेतिया), गोगाबील (पूर्णिया) एवं गोकुल जलाशय (भोजपुर) को रामसर साइट के रूप में घोषित किये जाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। इनमें ज्यादातर आर्द्रभूमि अपनी खास पहचान के लिए भी जानी जाती हैं। लेकिन, वे इकोटूरिज्म के तहत विकास का बाट जोह रही हैं। बिहार सरकार का पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग इन्हें इको टूरिज्म स्थल के रूप में विकसित कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल के कदम बढ़ाने को तैयार है। आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम, 2017 के अनुसार राज्य के विभिन्न जिलों में अवस्थित प्रमुख 216 आर्द्रभूमि खंड का संक्षिप्त दस्तावेज व स्वास्थ्य रिपोर्ट कार्ड तैयार किया गया है। उक्त आर्द्रभूमियों का संरक्षण एवं विकास कार्य केद्र व राज्य सरकारों की योजना के तहत किया जा रहा है। 12 फरवरी 2025 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने विभागीय कार्यों की समीक्षा बैठक में बताया कि बिहार में लगभग 4500 आर्द्रभूमि खंड अवस्थित हैं एवं आर्द्रभूमि हमें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के साथ-साथ कृषि, मत्स्यपालन जैसे- जीविकोपार्जन गतिविधियों में सहयोग प्रदान करता है। सरकार द्वारा आर्द्रभूमियों के संरक्षण एवं विकास तथा ईको पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है, इसके मद्देनजर वैशाली जिला स्थित बरैला झील के विकास के लिए 28.65 रुपये करोड़, कटिहार जिला स्थित गोगाबील आर्द्रभूमि के विकास के लिए 10.23 करोड़ रुपये एवं बेगूसराय जिला अंतर्गत कॉवरताल आर्द्रभूमि के लिए 22.36 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गयी। इस बीच, वैशाली जिले के उपविकास आयुक्त कुंदन कुमार ने कहा है कि बरैला झील को पक्षी आश्रयणी के रूप में विकसित किया जायेगा। प्राकृतिक नजारे से लबरेज खूबसूरत और मेहमान पक्षियों के लिए प्रसिद्ध बरैला आर्द्रभूमि एवं बरैला झील ‘सलीम अली जुब्बा साहनी पक्षी आश्रयणी’ के नाम से जाना जाता है। बरैला झील वैशाली जिले के पातेपुर और जन्दाहा प्रखंडों में स्थित है। बरैला आर्द्रभूमि का कुल क्षेत्रफल 1625.34 हेक्टेयर है।
बिहार सरकार ने 28 जनवरी 1997 को बरैला झील सलीम अली पक्षी अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया था। अधिसूचित क्षेत्र को 21 छोटे-छोटे पृथक खंडों में बांटा गया है। आर्द्रभूमि क्षेत्र आठ गांवों अमथावा, दुलौर, पीरापुर, चकैया मथाई, लोमा, मानसिंहपुर बिझरौली, बाजिदपुर एवं कबई बरैला से घिरा हुआ है। बरैला झील मुख्य रूप से प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के स्थानीय पक्षियों, मछलियों और अन्य जीवों का आवास है। आर्द्रभूमि नून और बाया नदियों के बीच स्थित है, जो इसके जल के प्रमुख स्रोत हैं। झील और उसके आसपास का क्षेत्र वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को अपने में समेटे हुए है। यहां प्रवासी पक्षियों की 59 प्रजातियां, स्थानीय पक्षियों की 106 प्रजातियां, 16 पेड़ प्रजातियां और 11 झाड़ीदार प्रजातियों के अलावा भी बहुत कुछ है, जो आगंतुकों का मन मोह लेते हैं। वैशाली जिले के जिला वन अधिकारी अमित कुमार बताते हैं कि अपने उच्च जैव विविधता मूल्यों और इसके द्वारा प्रदान की जानेवाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के कारण, बरैला आर्द्रभूमि को राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन कार्यक्रम के तहत भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में पहचाना गया है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी स्थानीय लोगों के लिए इस आर्द्रभूमि का बहुत महत्व हैं। वे इस झील के पानी को पवित्र मानते हैं और इसे ‘जीवाजौर’ कहते है, जिसका स्थानीय शब्दों में अर्थ है ‘जीवन देनेवाला पानी’। अमथवा एवं कबई गांव के मध्य बरैला झील के निकट जीवाजौर माता का मंदिर अवस्थित है। लोग श्रद्धा भाव से जीवाजौर माता की पूजा करके झील में स्नान करते हैं।
बरैला आर्द्रभूमि की खूबी है कि यह मौसमी बाढ़ से संरक्षण प्रदान करती है। पर्यटन के साथ-साथ यह जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण भंडार है। स्थानीय समुदायों के लिए ईंधन और चारे के स्रोत के रूप में कार्य करता है। आर्द्रभूमि पानी की गुणवत्ता को बढ़ाती है, स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करती है, भूजल को रिचार्ज करती है, मिट्टी के कटाव को रोकती है और अधिक सौंदर्यपूर्ण वातावरण में योगदान देती है। इसके अलावा, आर्द्रभूमि मत्स्यपालन और सब्जी उत्पादन के माध्यम से स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के संभावित स्रोत के रूप में कार्य करती है। बरैला एक मौसमी आर्द्रभूमि है, जिसमें अलग-अलग स्रोतों से पानी आता है। जल प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं नून नदी, बाया नदी, आर्द्रभूमि पर प्रत्यक्ष वर्षा और अपने स्वयं के जलग्रहण क्षेत्र। इस आर्द्रभूमि का संभावित जलग्रहण क्षेत्र 22.05 वर्ग किमी है, जो समतल है और कृषि भूमि और गांवों से घिरा हुआ है। ठंड के मौसम में बरैला झील के जलस्तर में कमी आना शुरू हो जाता है तथा गर्मी के मौसम में इसके अधिकांश भाग सूखने लग जाते हैं।
सलीम अली पक्षी आश्रयणी के अन्दर तथा इसकी सीमाओं के बाहर लम्बे तथा घने वृक्षों का अभाव है, जिसके कारण पक्षियों को अपना घोंसला निर्माण एवं बैठने की जगह-बसेरा स्थल इत्यादि के लिए जगह नहीं मिल पाती है। अमित कुमार बताते हैं कि पक्षियों के उचित आवासन के लिए हाईलैंड के निर्माण का प्रस्ताव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने रखा है। साथ ही विभिन्न फलदार एवं जैव विविधता महत्वपूर्ण वाले प्रजातियों के पौधारोपण भी किये जाने हैं। साथ ही, वर्त्तमान में आनेवाले पक्षियों को बैठने एवं घोंसला निर्माण आदि कार्यों के लिए स्थल उपलब्ध कराने के लिए पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों यथा बांस, लकड़ी का बल्ला इत्यादि से कृत्रिम स्थल का निर्माण किया जाना चाहिए। बरैला झील पक्षी आश्रयणी फ्राग्माइट्स कुर्का (नरकट), जलकुंभी और अन्य जलीय खरपतवार प्रजातियों से अत्यधिक प्रभावित है। खरपतवारों के फैलने से खुले पानी के आवास में कमी आती है, जो जलमग्न पौधों के समुदायों के विकास के लिए आवश्यक है, जिससे संबंधित जीव-जंतु प्रभावित होते हैं। खरपतवार की उच्च वृद्धि दर महत्वपूर्ण देशी पौधों की प्रजातियों के विकास को भी सीमित करती है, जिससे प्रजातियों की विविधता कम हो जाती है। इसलिए बरैला झील से नरकट से साफ करने के लिए वृहत पैमाने पर खरपतवार हटाना चाहिए। सवाल संरक्षण का है तो, ठंड के मौसम में प्रवासी पक्षियां की संख्या यहां काफी अधिक रहती है। उनकी सुरक्षा के लिए वनपाल के नेतृत्व में वनरक्षियां एवं पक्षी मित्रों को सम्मिलित करते हुए विशेष गश्ती दल गठित कर विभागीय नावों द्वारा आश्रयणी के अन्दर एवं वाहनों द्वारा आर्द्रभूमि के बाहर गश्ती कार्य की काफी अहमियत है, ताकि वाइल्ड लाइफ को सुरक्षा मिल सके।
देखा जाये, तो संसाधन एवं सुविधाओं के अभाव में बरैला झील के इतने बड़े क्षेत्र पर प्रभावी नियंत्रण संभव नहीं हो पाता है। पक्षियों के अवैध शिकार की भी खबरें आती हंै। शिकारी शाम ढलने के बाद एवं सूर्योदय के पहले सक्रिय हो जाते हैं। इन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए दिन-रात यानी हर समय निगरानी जरूरी है। इस दिशा में निगरानी के लिए टॉवर पर कैमरा लगाकर और कंट्रोल रूम बना कर नजर रखने का प्रस्ताव है।
वैशाली जिला बिहार के विभिन्न पर्यटन सर्किट यथा बुद्धिज्म सर्किट, तीर्थंकर सर्किट एवं इस्लामिक सर्किट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वर्ष 2024 (अक्टूबर तक) 4,37,549 देशी पर्यटक तथा 59,219 विदेशी पर्यटक वैशाली में पर्यटन के उद्देश्य से आये। ऐसे में बरैला झील सलीम अली पक्षी आश्रयणी भी इकॉटूरिजम का हिस्सा बन पर्यटकों को अपनी ओर खींच सकता है। प्राकृतिक परिवेश, पक्षियों की विविधता इत्यादि के कारण बिहार के नेचर एवं वाइल्ड लाइफ सर्किट में सम्मिलित होने के लिए आवश्यक अहर्ता भी रखता है। यहां आनेवाले पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में यह उभर कर आ सकता है। इसके लिए तमाम सुविधाओं को बहाल करना होगा। एकीकृत इन्टरप्रिटेशन -सह- वॉच टॉवर, कैफेटेरिया, बच्चों का खेल उद्यान, सोविनियर शॉप इत्यादि का संचालन ईको विकास कमिटी द्वारा होना चाहिए। आर्द्रभूमि और अभयारण्य की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी जरूरी है, ताकि रोजगार के भी अवसर उत्पन्न हो सकें।
यों तो, सलीम अली जुब्बा सहनी पक्षी आश्रयणी के आकर्षण से बड़ी संख्या में पर्यटक, पक्षी प्रेमी व पर्यावरण विज्ञानी तो यहां आते ही हैं, साथ ही यह झील क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लिए आजीविका का आधार भी है। बरैला पर ही उनकी रोजी-रोटी के साथ खेती-बारी भी निर्भर है। आनेवाले दिनों में पर्यटकों के ठहराव के लिए आसपास के गांवों में ही पेइंग गेस्ट कल्चर शुरू करने की सरकार की योजना है। बरैला झील, हाजीपुर से सड़क मार्ग से करीब 40 एवं पटना से करीब 60 किलोमीटर है। हाजीपुर-जंदाहा एनएच 322 से यहां पहुंचा जा सकता है। वहीं, रेलमार्ग से हाजीपुर आकर यहां से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। नये साल का जश्न मनाने तो यहां प्रत्येक वर्ष भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं। फिलहाल, बरैला के आसपास ठरहने की अभी कोई व्यवस्था नहीं है। इसके लिए हाजीपुर में होटल उपलब्ध है। बरैला झील के पास फिलहाल खाने-पीने की व्यवस्था भी नहीं है। केवल बरैला जानेवाले मार्ग में चैक-चैराहों पर चाय-नाश्ते की छोटी-छोटी कई दुकानें तो हैं।
तीन दिवसीय वैशाली प्रवास के दौरान 2010 में झील में नौका विहार के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बरैला के विकास की बात कही थी। मुख्यमंत्री यहां की प्राकृतिक जैव विविधताओं को देख मुग्ध हुए और कहा था कि यह अद्भुत झील है। इसे तो बिहार के सबसे बड़े पर्यटक विहार के रूप में विकसित किया जा सकता है। मौके पर ही मुख्यमंत्री ने अफसरों को निर्देशित किया था कि तुरंत योजना बनाएं। यहां नौका विहार के साथ अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित रेस्तरां बनाने एवं पर्यटन स्थल के रूप में पूरे झील एवं आसपास के क्षेत्र को विकसित करने की योजना पर काम भी शुरू हुआ था। लेकिन, इसे धरातल पर पूरी तरह नहीं उतारा जा सका। जरूरत है अद्भुत प्राकृतिक बसेरा बरैला झील को पक्षियों की सुरक्षा के मद्देनजर इको टूरिजम के तौर पर विकसित किया जाये, ताकि जीव-जंतुओं के साथ-साथ क्षेत्र के विकास का दरवाजा खुल सके।
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