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कुदरत के पिटारे में कई नायाब और अनमोल तोहफे हैं। इन्हीं में से एक है डिपहिल्लेया ग्रे। एक ऐसा फूल जो दिखने में तो आम है, लेकिन इसमें एक बेहतरीन खूबी है। इस फूल को पहली बार देखकर शायद ही आप यह अंदाजा लगा पाएंगे कि इसमें कुछ खास है। असल में यह सामान्य सा दिखने वाला सफेद फूल पानी के संपर्क में आते ही पारदर्शी हो जाता है। ऐसे जैसे क्रिस्टल का बना हो। ऐसा फूल की पंखुड़ियों में ढीली कोशिका संरचना के कारण होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पखुड़ियों पर पानी की बूंदें पड़ती हैं तो ये एक वाटर इंटरफेस बनाता है। ऐसे में रोशनी इस फूल के आर-पार हो जाती है।ये फूल जापान के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है और लोग इसे स्केलेटन फ्लावर भी कहते हैं।
हरा नींबू क्या है?
हरा नींबू एक खट्टा फल है। ये जितना छोटा होता है उतने ही ज्यादा इसमें न्यूट्रिएंट्स होते हैं। इसके जूस, फल, पील और ऑयल का इस्तेमाल दवाईयों को बनाने के लिए किया जाता है। हरा नींबू पानी को डायट में शामिल करने से पाचन में सुधार होता है। इसमें कुछ ऐसे कंपाउंड होते हैं जो आंतों में गैस्ट्रिक जूस का स्त्राव बढ़ाता है जिससे पाचन में आसानी होती है। साथ ही, इसके रस में मौजूद एसिड भोजन को पचाने में भी मदद करता है। इसलिए खाना खाने के बाद नींबू पानी का सेवन सेहत के लिए हितकारी हो सकता है। कई रिसर्च के अनुसार ये बात सामने आई है कि खट्टे फलों से कुछ प्रकार के कैंसर के जोखिम को कम किया जा सकता है। नींबू विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत है। यह बहुत ही अच्छा एंटीऑक्सीडेंट है। इसको नियमित तौर पर लेने से इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है। इसके नियमित इस्तेमाल से दिल की बीमारी का खतरा भी कम होता है। हरा नींबू में मौजूद विटमिन सी चेहरे को ड्रायनेस, झुर्रियों और सन डैमेज से बचाता है। इसको नियमित पीने से बॉडी डिटॉक्सिफाई होती है। इसका सीधा असर हमारी त्वचा पर चमक के रूप में दिखता है। त्वचा को जवां रखने के लिए यह बेहतर और आसान विकल्प हो सकता है। कुछ शोध के अनुसार, विटामिन सी मधुमेह के मरीजों का बढ़ा हुआ शुगर लेवल पूरे दिन कम रखने में सहायक है। नींबू में विटामिन सी भरपूर मात्रा में शामिल होता है। इसलिए इसे डायबिटीज के पेशेंट के लिए अच्छा माना जाता है। हरा नींबू में सिट्रिक एसिड और विटामिन सी होता है। 2014 में किए गए एक शोध के अनुसार विटामिन सी और सिट्रिक एसिड किडनी स्टोन को गलाने के लिए लाभदायक है। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि विटामिन सी और सिट्रिक एसिड को अपने आहार में शामिल करने से पथरी होने की संभावना कम होती है। नींबू बेहद सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में पेट की समस्या को यह ट्रिगर कर सकता है। अगर आपको खट्टे फलों से एलर्जी है तो इसका सेवन न करें। जिन लोगों को एसिडिटी रहती है वो भी इससे दूरी बनाकर रखें।
क्या हैं माजूफल, जायफल, और कायफल
माजूफल, जायफल, और कायफल भारत तथा एशिया के कई देशों में घरेलू चिकित्सा के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। पहले तो ये तीनों अपने मूल स्वरूप में हर घर में मिलते थे परंतु अब इनके उत्पाद मिलते हैं पावडर या कैप्सूल के रूप में। पहले बात करते हैं जायफल की। अंग्रेज़ी में इसे नटमेग कहते हैं। वनस्पति विज्ञानी इसे मायरिस्टिका फ्रेगरेंस नाम से जानते हैं। नाम से ही पता चलता है कि यह कोई सुगंधित वस्तु है। संस्कृत साहित्य में इसे जाति फलम कहा गया है। इसके पेड़ जावा, सुमात्रा, सिंगापुर, लंका तथा वेस्ट इंडीज़ में अधिक पाए जाते हैं। हमारे यहां तमिलनाडु और केरल में इसके पेड़ लगाए गए हैं। जायफल का वृक्ष सदाबहार होता है। फूल सफेद और फल छोटे-छोटे, लगभग अंडाकार लाल-पीले होते हैं जो पकने पर दो भागों में फट जाते हैं। फल का उपयोग सुगंध, उत्तेजक, मुख दुर्गंध नाशक और वेदनाहर के रूप में किया जाता है। अब जरा जावित्री की बात कर लेते हैं। यह लाल नारंगी रंग की मोटी जाल समान रचना है जो टुकड़ों के रूप में बाज़ार में मिलती है। जावित्री दरअसल जायफल के बीज पर लगी एक विशेष रचना है, जो सुगंधित और तीखी होती है। इसमें मुख्य रूप से वाष्पशील तेल, वसा और गोंद होते हैं। इसके गुण भी जायफल की तरह होते हैं इसे हम बीज का तीसरा छिलका या विज्ञान की भाषा में एरील कहते हैं। अब बात करें कायफल की। वनस्पति शास्त्र में मिरिका एस्कूलेंटा नाम से ज्ञात यह पेड़ हिमालय के उष्ण प्रदेशों में खासी पहाड़ियों में पाया जाता है। सिंगापुर में भी मिलता है। चीन तथा जापान में इसकी खेती की जाती है। इसके मध्यम ऊंचाई के वृक्ष सदाबहार होते हैं, छाल बादामी-धूसर और सुगंधित होती है। फल लगभग आधा इंच लंबे अंडाकार दानेदार बादामी होते हैं। यद्यपि वृक्ष का नाम कायफल है, तब भी औषधि के रूप में इसकी छाल का ही प्रयोग कायफल के नाम से किया जाता है। अतः यह फल नहीं, एक पेड़ की छाल है। इसकी छाल को सूंघने से छींक आती है, तथा पानी में डालने पर लाल हो जाती है। अब बात एक बिलकुल ही नकली फल - माजूफल - की। यह नकली फल क्वेर्कस इनफेक्टोरिया नामक एक ओक प्रजाति का है और गाल्स के रूप में बनता है। सदियों से एशिया महाद्वीप में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में इन गाल्स का उपयोग किया जाता रहा है। मलेशिया में इसे मंजाकानी कहते हैं। इसका उपयोग चमड़े को मुलायम करने और काले रंग की स्याही बनाने में वर्षो से हो रहा है। भारत में इसे माजूफल कहते हैं। क्वेर्कस इनफेक्टोरिया एक छोटा पेड़ है, जो एशिया माइनर का मूल निवासी है। पत्तियां चिकनी और चमकदार हरी होती हैं। जब ततैया शाखाओं पर छेद कर उनमें अपने अंडे देती है तो इन अंडों से निकलने वाले लार्वा और तने की कोशिकाओं के बीच रासायनिक अभिक्रिया होती है जिसके फलस्वरूप शाखाओं पर फल जैसी गोल-गोल कठोर रचनाएं बन जाती है, जो दिखने में खुरदरी होती हैं। इन्हें गाल कहते हैं और यही माजूफल है। इस गाल में अन्य रसायनों के अलावा टैनिन काफी मात्रा में पाया जाता है। भारत में माजूफल का उपयोग दंत मंजन बनाने, दांत के दर्द और पायरिया के उपचार में किया जाता है। इस गाल से मिलने वाला टैनिक एसिड गोल्ड सॉल बनाने के काम आता है। गोल्ड सॉल का उपयोग इम्यूनोसाइटोकेमेस्ट्री में मार्कर के रूप में किया जाता है। वर्तमान में इसका उपयोग खाद्य पदार्थों, दवा उद्योग, स्याही बनाने और धातु कर्म में बड़े पैमाने पर किया जाता है। माजूफल का उपयोग प्रसव के बाद गर्भाशय को पूर्व स्थिति में लाने के लिए भी किया जाता है। तो हमने देखा कि ये तीन विचित्र चीज़ें हैं, जिनका उपयोग फल कहकर किया जाता है। इनमें से एक (जायफल) तो फल नहीं बीज है। दूसरा (कायफल) छाल है जबकि तीसरा (माजूफल) तो फलनुमा दिखने के बावजूद गाल नामक एक विशेष संरचना है।
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पानी के संपर्क में आते ही यह फूल पारदर्शी हो जाता है
ऐसा फूल की पंखुड़ियों में ढीली कोशिका संरचना के कारण होता है...
Tree TakeFeb 18, 2022 04:26 PM
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