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प्लास्टिक का प्रयोग प्रकृति की रिसाइकिलिंग व्यवस्था में व्यवधान

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प्लास्टिक का प्रयोग प्रकृति की रिसाइकिलिंग व्यवस्था में व्यवधान

देश में सिंगल यूज प्लास्टिक को 1 जुलाई से पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है...

प्लास्टिक का प्रयोग प्रकृति की रिसाइकिलिंग व्यवस्था में व्यवधान

Green UPdate

प्रदेश के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने तथा प्लास्टिक व पॉलीथिन के दुष्प्रभाव से जनजीवन को बचाने के लिए प्रदेश को सिंगल यूज प्लास्टिक व पॉलीथिन और इससे बनी सामग्री के प्रयोग को पूर्णरूप से प्रतिबंधित करने तथा राज्य को इससे मुक्त करने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से 29 जून से पांच दिवसीय जन जागरूकता अभियान चलाया। इस अभियान के अन्तिम दिन 3 जुलाई को अन्तर्राष्ट्रीय प्लास्टिक कैरी बैग मुक्त दिवस के अवसर पर ‘उत्तर प्रदेश प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कॉन्क्लेव-2022’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में किया गया। प्रदेश के नगर विकास एवं ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने इस कार्यशाला का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि के रूप में किया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा अरूण कुमार सक्सेना, महापौर लखनऊ संयुक्ता भाटिया भी उपस्थिति रहीं।
कार्यशाला के शुरूआत में राष्ट्रगान गाया गया। इसके पश्चात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का सिंगल यूज प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के संबंध में वीडियो संदेश सुनाया गया। इस कॉन्क्लेव में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की नवीन तकनीकों एवं प्लास्टिक के विकल्प उत्पादांे की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। सिंगल यूज प्लास्टिक के विभिन्न विकल्पों पर अनेक स्टार्ट-अप द्वारा प्रस्तुतीकरण भी किया गया। इस अवसर पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए नगर विकास मंत्री एके शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से देश में सिंगल यूज प्लास्टिक को 1 जुलाई से पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है। पूरे विश्व में प्लास्टिक के बढ़ते प्रयोग के कारण पर्यावरण असंतुलन के साथ जीव-जन्तुओं एवं मनुष्यों के जीवन को गंभीर संकट खड़ा हो गया है, जिससे निपटने के लिए पूरी दुनिया में प्रयास किये जा रहे हैं। प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व में इस संकट से निपटने के लिए प्रदेश सरकार पूरी रणनीति के साथ कार्य कर रही है और पूरी तरह से गंभीर है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीर स्थिति के लिए हमारी अति आधुनिकता भी जिम्मेदार है। दुनिया में औद्योगिक क्रांति के बाद मशीनों का प्रयोग बढ़ा, नई-नई वस्तुओं का अविष्कार हुआ। शर्मा ने कहा कि प्रकृति में सम्पूर्ण चीजों का रिसाइकिलिंग होता है। प्लास्टिक का प्रयोग कर प्रकृति की रिसाइकिलिंग व्यवस्था में व्यवधान न डालें। प्लास्टिक खतरनाक रासायन हाड्रोकार्बन व पेट्रो केमिकल्स से बनाया जाता है। इधर-उधर फेकने से मिट्टी में मिल जाता है। पानी में बहकर नदियों व समुद्र तक पहुंच जाता है। इस प्लास्टिक कचरे को गायों व अन्य जानवरों, मछलियों व अन्य जलीय जीवों द्वारा खाया जाता है, जिसका दुष्प्रभाव मनुष्यों तक भी पहुंचता है। उन्होंने लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को अब अपने दैनिक जीवन से निकाल दें और प्लास्टिक के विकल्पों का प्रयोग करें। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि प्लास्टिक के पूर्ण प्रतिबंध के लिए दैनिक शर्तों के साथ कुछ नयी शर्तों को जोड़ा जाए तथा नियमों को कठोरता से लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि हर अच्छे कार्य की शुरूआत हम सभी से होती है, जिसकी शुरूआत हम सभी को अभी करनी है। उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा कि केंद्र व प्रदेश की सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगायी है। इसको जमीन पर उतारने के लिए हम सभी को सहयोग करना होगा।
अभियान के दौरान 734 नगरीय निकायों द्वारा 5000 क्विंटल प्लास्टिक इकट्ठा करने पर धन्यवाद दिया तथा अच्छा कार्य करने वाले तीन सर्वश्रेष्ठ नगर निगम को सम्मानित किया। इसमें प्रथम स्थान लखनऊ, द्वितीय स्थान कानपुर नगर तथा तृतीय स्थान गाजियाबाद और आगरा को मिलाकर दिया गया। कॉन्क्लेव केे विशिष्ट अतिथि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा अरूण कुमार सक्सेना ने कार्यों की सरहाना करते हुए बताया की इस पांच दिवसीय अभियान में 5,000 क्विंटल प्लास्टिक का निस्तारण किया गया। उन्होंने प्रदर्शनी में दर्शाय गये प्लास्टिक के विभिन्न विकल्पों की सरहाना की। साथ ही प्लास्टिक के दुष्प्रभाव मृदा का अनुपजाउ होना, कृषि उत्पादन में कमी होना, नदियांे और नालों में बहाव की समस्या आदि को बताया। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल न होने से 500 वर्ष तक यह नष्ट नहीं होता है और माइक्रो कण मिट्टी, पानी आदि में मिल जाता है और जीवन को नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने आश्वस्त किया कि प्रदेश में एक माह के भीतर ही प्लास्टिक के प्रयोग में कमी दिखेगी। उन्होंने लोगों से प्लास्टिक का विकल्प प्रयोग करने के साथ ही वृक्षारोपण के दिन पेड़ लगाने की भी अपील की। डा रेगिना दूबें, महानिदेशक, जर्मन संघीय मंत्रालय तथा डा स्टीफन ग्राभेर, प्रभारी, जर्मन संघीय गणराज्य ने उत्तर प्रदेश प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कान्क्लेव-2022 के अन्तर्गत हुए कार्यों की सरहाना की। इसके पश्चात् तीन विभिन्न तकनीकि सत्रों का संचालन भी हुआ, जिसमें वशेषज्ञों ने अपनी राय प्रस्तुत की। कार्यक्रम में अपर मुख्य सचिव पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मनोज सिंह, सचिव नगर विकास रंजन कुमार, सचिव वन एवं पर्यावरण आशीष तिवारी, निदेशक नगरीय निकाय नेहा शर्मा के साथ अन्य अधिकारी उपस्थित थे। ‘स्वच्छता एवं ग्रीन भारत शपथ बोर्ड’ पर सभी ने साइन कर प्रतिज्ञा ली। इस कॉन्फेरेन्स को सफलता पूर्वक आयोजित कराने में राज्य सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, नगर विकास विभाग, जीआईजेड तथा अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों ने सहयोग किया।
नहीं रहा बब्बर शेर मनन
इटावा सफारी पार्क, इटावा में बब्बर शेर प्रजनन केंद्र का मुख्य जनक बब्बर शेर ‘मनन‘ विगत दिनों से लगातार अस्वस्थ चल रहा था, जिसके उपचार में सफारी पार्क की चिकित्सकीय टीम एवं प्रशासनिक टीम अनवरत लगी रही। पिता ‘वीर‘ एवं मॉ ‘मयूरी‘ की सन्तान ‘मनन‘ का जन्म 18 फरवरी 2008 को सक्करबाग प्राणि उद्यान, जूनागढ़ (गुजरात) में हुआ था। जनपद इटावा में एशियाई बब्बर शेर प्रजनन केंद्र की स्थापना के निर्णयोपरान्त, ‘मनन‘ को जूनागढ़ से दिनांक 11.04.2014 को इटावा लाया गया था। यहॉ लाये जाने के बाद ‘जैसिका‘ नामक शेरनी से इसका मिलन जून 2016 में हुआ और ‘जैसिका‘ ने गर्भधारण कर अक्टूबर 2016 में दो नर शावकों को जन्म दिया, जो आगे चलकर ‘‘सिम्बा-सुल्तान‘‘ के नाम से जाने गये। बाद के वर्षो में ‘मनन‘ ने ‘जैसिका‘ के माध्यम से जनवरी 2018 में ‘‘बाहुबली‘‘, जून 2019 में ‘‘भरत, रूपा एवं सोना‘‘, अप्रैल 2020 में ‘‘बब्बर शेरनी जेनिफर‘‘ के माध्यम से ‘‘केसरी‘‘ तथा दिसम्बर 2020 में पुनः ‘जैसिका‘ के माध्यम से ‘‘नीरजा एवं गार्गी‘‘ नामक शावकों के प्रजनन में अपना अपूर्व योगदान दिया। ‘मनन‘ को जूनागढ़ से लाये जाने के समय उसकी कमर के दाहिने भाग पर एक उभार (गॉठ) था, जिसका परीक्षण समय≤ पर भारतीय पशु चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान, इज्जत नगर, बरेली के वन्य पशु चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा कराया गया और उनके निर्देशानुसार आवश्यक चिकित्सकीय सहायता पहॅुचायी जाती रही। डॉ पार्थ सारथी बनर्जी, डॉ के महेन्द्रन तथा डॉ एम करीकलन की एक टीम द्वारा ‘मनन‘ का परीक्षण कराया गया तथा कानपुर प्राणि उद्यान के डॉ नासिर द्वारा मौके पर जाकर भी ‘मनन‘ का परीक्षण किया गया। मथुरा पशु चिकित्सा संस्थान, मथुरा तथा डॉ जेम्स स्टील, पशुचिकित्साधिकारी, स्मिथसोनियन जूलोजिकल पार्क, वॉशिंगटन डीसी, यूएसए आदि विशेषज्ञों की भी राय ली गयी। विशेषज्ञों द्वारा मनन की गॉठ को शल्य क्रिया द्वारा हटाये जाने का सुझाव दिया गया। इसी सन्दर्भ में आवश्यक पैथालॉजिकल जॉच के साथ-साथ बायोप्सी जॉच हेतु नमूना जनवरी 2018 में बरेली भेजा गया था, जिसकी परीक्षण रिपोर्ट भारतीय पशु चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान, इज्जत नगर, बरेली द्वारा प्रेषित की गयी, ‘‘डमसंदवउं ूपजी अंतपंइसम कमहतमम व िसवबंस कमतउंस पदअंेपवद ंदक ंज जपउमे ेीवूमक बमससनसंत चसमवउवतचीपेउ‘‘ होना बताया। इसी बीच ‘मनन‘ के गॉठ वाले भाग में कुछ वृद्धि होने के साथ ही स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य समस्याएं भी हो रही थीं, जिस हेतु लगातार विशेषज्ञों से परामर्श किया जा रहा था। ‘मनन‘ के स्वास्थ्य में उत्तरोत्तर गिरावट महसूस की जा रही थी। उसे उच्च से उच्च स्तर की चिकित्सकीय सुविधाएं उपलबध कराते हुए उसके स्वास्थ्य पर सतत निगरानी रखे जाने का भरकस प्रयास किया जाता रहा। माह मई 2022 के दौरान मनन द्वारा भोजन में कमी की जाने लगी। जिस कारण कीपर द्वारा उसे हैण्ड फीडिंग कराया जाने लगा। जून के प्रथम सप्ताह में मनन की बायोप्सी रिपोर्ट प्राप्त हुयी, जिसमें उसे ।उमसवदवजपब डमसंदवउं नामक बीमारी से ग्रस्त बताया गया, जो एक प्रकार का स्किन कैंसर है। सफारी प्रशासन द्वारा 07 जून 2022 को निदेशक, भारतीय वन्यजीव अनुसंधान, संस्थान, बरेली को सफारी में विशेषज्ञ टीम भेजने हेतु लिखा गया। भारतीय वन्यजीव अनुसंधान संस्थान, बरेली के विशेषज्ञों द्वारा ‘मनन‘ को अन्य जॉच पूर्ण होने तक च्ंससपंजपअम ज्तमंजउमदज की सलाह दी गयी। जिसे च्ंससपंजपअम ज्तमंजउमदज पर रखा गया। दिनांक 13.06.2022 को ‘मनन‘ का शारीरिक तापमान जॉच में अधिक पाया गया तथा वह मुंह से सांस ले रहा था। उसे एण्टी पाइरेटिक दवाओं के साथ-साथ थ्सनपक ज्ीमतंचल भी दी गई किन्तु अपरान्ह लगभग 04.45 बजे ‘मनन‘ का देहान्त हो गया। इटावा सफारी प्रशासन सहित पूरा वन विभाग इस घटना से आहत व दुखी है।
देश के सबसे बूढ़े बाघों में से एक ’राजा’ की मौत
देश के सबसे उम्रदराज बाघों में से एक राजा की 11श्रनसल को मौत हो गई। अधिकारियों के मुताबिक राजा की उम्र 25 साल 10 महीने थी। जलदापाड़ा के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर दीपक एम ने बताया, वह देश के सबसे पुराने बाघों में से एक था। उसे अगस्त 2008 में उत्तरी बंगाल के जलदापाड़ा के लेपर्ड रेस्क्टू सेंटर लाया गया था। आम तौर पर एक बाघ 16 साल तक जीता है। वहीं बाघ की अधिकतम आयु 28 से 30 साल होती है। राजा पहले सुंदरबन में रहता था। एक बार मगरमच्छ ने उसे घायल कर दिया। उसके पीछे के पैर में इतनी चोट आई कि वह जीने के लिए तरसने लगा। बता दें कि सुंदरबन डेल्टा दुनिया का सबसे बड़ा मैग्रोव वन है। यह डेल्टा भारत और बांग्लादेश में फैला हुआ है। सुंदरबन में करीब 100 बाघ रहते हैं और यहां की नदी में मगरमच्छों की भरमार है। अलीपुरद्वार के डीएम एसके मीना ने ट्वीट कर कहा, ’यह बाघ 11 साल का था जब खैराबाड़ी रेस्क्यू सेंटर में लाया गया था। यहां वह 15 साल तक रहा। यह देश में सबसे ज्यादा उम्र तक जीने वाले बाघों में से एक था।’

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