Green Update
लोक भारती एवं उत्तर प्रदेश के वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा 8-15 अगस्त तक आयोजित हरिशंकरी सप्ताह का शुभारंभ वन मंत्री डा अरुण कुमार सक्सेना द्वारा किया गया। सुल्तानपुर रोड पर स्थित ब्रहमकुमारी आश्रम में संपन्न इस आयोजन में वन मंत्री ने हरिशंकरी का रोपण किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वन मंत्री डा अरुण कुमार सक्सेना ने कहा कि हरिशंकरी अर्थात पीपल, बरगद और पाकड़ के रोपण से हमें आक्सीजन तो मिलता ही है, इनके जड़ों द्वारा भूगर्भ जल भी संरक्षित होता है। इनकी सघन छाया एवं फलों से मानव और पशु-पक्षियों को संरक्षण मिलता है। हरिशंकरी का अधिकाधिक रोपण करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। इसीको ध्यान में रखकर आजादी के इस अमृत महोत्सव में लोक भारती के सहयोग से वन विभाग ने उत्तर प्रदेश के समस्त मंडल मुख्यालयों पर 75-75 हरिशंकरी रोपित करने के साथ अधिकाधिक स्थानों पर हरिशंकरी रोपण का वृहद अभियान आरंभ किया गया है। इसके अंतर्गत केवल लखनउ में 7500 हरिशंकरी का रोपण किया जाना है। उन्होंने कहा कि अमृत वन की स्थापना हेतु 43003 स्थल चयनित किये जा चुके हैं। इन स्थलों पर 34 लाख 23 हजार 911 पौधों का रोपण किया जाना है। उन्होंने निर्देश दिए कि पौधरोपण के साथ ही पौधों की सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता दी जाये। उन्होेंने कहा कि प्रत्येक ग्राम सभा व शहरी निकाय में अमृत वन की स्थापना करायी जानी है। अमृत वन में 75 स्थानीय प्रजातियों के पौधों का रोपण किया जायेगा, जिसमें पीपल, पाकड़, नीम, बेल, आंवला, आम, कटहल एवं सहजन के पौधों के रोपण को वरीयता दी जाये।वन मंत्री ने निर्देश दिए कि अमृत वन के स्थापना हेतु स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं से संबंधित स्थलों एवं अमृत सरोवर के आस पास पौधरोपण को विशेष प्रमुखता दी जाये। प्रत्येक विधानसभा में भव्य कार्यक्रम का आयोजन कराया जाये। इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधि स्क्ूली बच्चों एवं स्काउट गाइड के विद्यार्थियों को खासतौर से आमंत्रित किया जाये। उन्होंने यह भी कहा कि हरिशंकरी पौधों की जियोटैगिंग हेतु हरीतिमा वन मोबाइल एप्लीकेशन को अपडेट रखा जाये। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 से अब तक 100 करोड़ पौधों का रोपण किया जा चुका है तथा वर्ष 2027 तक 175 करोड़ वृक्षारोपण का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि 275 करोड़ पौधे 1300 लाख टन कार्बन का अवशोषण करेंगे। वृक्ष हमारे जीवन में कार्बन अवशोषण का सबसे सस्ता साधन है। साथ ही प्रदेशवासियों से अपील करते हुए उन्होंन कहा कि हर बच्चे के जन्म पर एक वृक्ष अवश्य लगायें। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जन प्रतिनिधियों के साथ-साथ आम जनमानस खासतौर से महिलाओं एवं बच्चों को इस वृक्षारोपण अभियान से अवश्य जोड़े।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पर्यावरण प्रेमियों को सम्बोधित करते हुए लोक भारती के सम्पर्क प्रमुख श्रीकृश्ण चैधरी ने बताया कि आज 8 अगस्त को प्रदेश भर में हरिशंकरी सप्ताह की शुरुआत हुई है। सरकार और समाज की इस संयुक्त पहल के अंतर्गत प्रदेश के अनेक स्थानों से हरिशंकरी रोपण के समाचार प्राप्त हो रहे हैं। हमारा ध्यान केवल अधिक से अधिक रोपण पर नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा पर भी है। प्रत्येक रोपित पौधा जब तक पेड़ के रूप में विकसित न हो जाए, हमें उसकी सुरक्षा और संरक्षण का दायित्व भी निभाना है। हरिशंकरी सप्ताह एक ऐसी पहल है जिससे हरियाली क्षेत्र बढ़ने के साथ ही भूगर्भ जल संरक्षण भी होगा। इस अवसर पर प्रमुख वन संरक्षक ममता संजीव दुबे, लोक भारती के अध्यक्ष विजय बहादुर सिंह, लोक भारती के सम्पर्क प्रमुख श्रीकृश्ण चैधरी एवं ब्रहमकुमारी राधा दीदी की प्रमुख उपस्थिति रही। हरिषंकरी महोत्सव के अंतर्गत आईआईएम रोड लखनउ में गायत्री परिवार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में 11 हरिषंकरी का रोपण किया गया। इस अवसर पर लोक भारती के क्षेत्रीय अध्यक्ष एवं विधान परिशद सदस्य पवन सिंह चैहार, वन निगम के प्रबंध निदेषक सुधीर कुमार शर्मा, डीएफओ रवि कुमार सिंह, गायत्री परिवार के गोपाल ओझा, केबी सिंह, लोक भारती के व्यवस्था प्रमुख धर्मेंद्र सिंह, प्रेरक पर्यावरण कार्यकर्ता कृश्णानंद राय एवं मुक्ति फाउंडेषन की रीता सिंह आदि उपस्थित थे। सिटी काॅलेज, चिनहट में आयोजित हरिशंकरी रोपण कार्यक्रम में लोक भारती के कैप्टन सुभाश ओझा, मंजरी उपाध्याय सहित सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
हरिशंकरी क्या हैः हमारे जीवन में पर्यावरण व धार्मिक दृष्टि से हरिशंकरी का अत्यधिक महत्व है। हरिशंकरी के तहत रोपित किए जाने वाले पौधे-बरगद, पीपल व पाकड़ वृक्षों को क्रमशः- शिव, विष्णु व ब्रह्या रूप माना गया है। पीपल, बरगद व पाकड़ के सम्मिलित रोपण को हरिशंकरी कहते हैं। हरिशंकरी का अर्थ है- विष्णु और शंकर की छायावली (हरि अर्थात् विष्णु तथा शंकर अर्थात् शिव)। हिन्दू मान्यता में पीपल को विष्णु व बरगद को शंकर का स्वरूप माना जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार पार्वती जी के श्राप वश विष्णु पीपल और शंकर बरगद व ब्रह्मा पलाश वृक्ष बन गये। पौराणिक मान्यता में पाकड़ वनस्पति जगत का अधिपति व नायक है व याज्ञिक कार्यों हेतु श्रेष्ठ छाया वृक्ष है। इस प्रकार हरिशंकरी की स्थापना एक परम पुण्य व श्रेष्ठ परोपकारी कार्य है। हरिशंकरी के तीनो वृक्षों को एक ही स्थान पर इस प्रकार रोपित किया जाता है कि तीनो वृक्षों का संयुक्त छत्र विकसित हो व तीनो वृक्षों के तने विकसित होने पर एक तने के रूप में दिखाई दें।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुअर फार्मों को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी
राज्य में सूअरों को रखने के लिए के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट के उपयोग पर रोक लगाने के लिए, पशुपालन निदेशक ने सभी जिलों के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश में सूअर प्राकृतिक तरीके ही से पाले जाए और कोई भी सुअर फार्म जेस्टेशन या फैरोइंग क्रेट का उपयोग ना करे। इसके अलावा निदेशक ने एक सर्कुलर जारी कर राज्य के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारियों को सुअर फार्मों को सख्त निगरानी में रखने का निर्देश दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सुअर पालन करते समय सुअर फार्म द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन ना किया जाए।उत्तर प्रदेश में लगभग चैदह लाख सूअरों की आबादी है-जो देश में दूसरे नंबर पर है। निकुंज शर्मा जो मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर हैं का कहना है “अत्यधिक कारावास के कारण, जेस्टेशन क्रेट में पाले गए सूअरों में हड्डी का क्षरण होता है और अत्यधिक तनाव के लक्षण दिखाई देते हैं, जिसमें क्रेट की सलाखों को काटना भी शामिल है जीवन बदलने वाला यह कदम उठाकर उत्तर प्रदेश सरकार ने पशुओं के लिए पहले से की गई उनकी जबरदस्त प्रगति में और इजाफा किया है-अवैध बूचड़खानों पर नकेल कसने से लेकर जानवरों के अवैध परिवहन तक”। मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन के एक अभियान के बाद दिल्ली, मणिपुर और गुजरात की सरकारों द्वारा जेस्टेशन क्रेट पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश सामने आए हैं। मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन से क्रेट में बंद सूअरों की दुर्दशा के बारे में जानने के बाद, बॉलीवुड स्टार और पशु प्रेमी जॉन अब्राहम ने मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला को एक पत्र भेजा, जिसमें जेस्टेशन क्रेट और फैरोइंग क्रेट पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया गया था। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन पिग्स द्वारा प्रस्तुत एक सूचना के अधिकार के उत्तर में कहा गया है कि जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट सुअरो के हिलने डुलने को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करते हैं,और इसलिए जानवरों के प्रति क्रूरता अधिनियम, 1960 की रोकथाम की धारा 11 (1) (म) का उल्लंघन करते हैं। आईसीएआर ने जनवरी 2014 के एक अर्ध-सरकारी पत्र को सभी पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय सूअर अनुसंधान केंद्र को संदर्भित किया, जिसमें विश्वविद्यालयों या अनुसंधान सुविधाओं में जेस्टेशन क्रेट के उपयोग के खिलाफ सलाह दी गई थी। आईसीएआर ने पंजाब के पशुपालन निदेशालय का भी हवाला दिया, जिसने यह सुनिश्चित करने के लिए जिला अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे कि राज्य में जेस्टेशन क्रेट का उपयोग नहीं किया जाए।
Popular Columns
हरिशंकरी सप्ताह में ५ हजार से अधिक पौधरोपण
हरिशंकरी के तहत रोपित किए जाने वाले पौधे-बरगद, पीपल व पाकड़ वृक्षों को क्रमशः- शिव, विष्णु व ब्रह्या रूप माना गया है...
Tree TakeAug 26, 2022 07:39 PM
Leave a comment