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कानपुर के कर्नलगंज के ईदगाह कब्रिस्तान में 9 जनवरी का दिन हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध के जोड़े के लिए बेहद भयानक रहा होगा। बताया जा रहा था कि वह करीब एक हफ्ते से इलाके में थे। हिमालय क्षेत्र में आए बर्फीले तूफान के कारण भोजन संकट से जूझ रहे ग्रिफ्फन गिद्ध परिवारों के साथ पलायन कर गए हैं। उन्हीं में से एक जोड़ा पिछले चार दिनों से कानपुर में बजरिया के स्लाटर हाउस स्थित क्रबिस्तान के पास मंडरा रहा था। इलाके के युवाओं ने नर को पकड़ लिया, जिसे जू में रखा गया है। जू के अफसरों ने बताया कि बजरिया निवासी युवाओं ने अपने साथियों संग इसे पकड़ा है। ’गिद्ध के साथ मादा भी थी, लेकिन वह उड़ गई’। जू के हवाले से रेंजर लल्लू सिंह ने बताया वन विभाग मादा की तलाश में जुट गया है। जू के डॉक्टरों के मुताबिक, मादा के भी आ जाने से ब्रीडिंग कराकर संख्या बढ़ाई जा सकती है। डॉ. नासिर के मुताबिक, यह बेहद सफाई पंसद जीव है, कभी शिकार नहीं करता, पशुओं के शवों को खाकर वातावरण शुद्ध रखता है। भोजन के दौरान इसका पूरा सिर गंदा हो जाता है, इसलिए भोजन करने के बाद नहाना आदत में शामिल है। मृत पशुओं के शरीर में डाइक्लोफेनाक दवा के कारण काफी घट गई है इनकी प्रजाति। भोजन की कमी, दूषित भोजन बिजली लाइनों से करंट लगने से समा जाते हैं काल के गाल में। कानपुर जू में इसकी संख्या तीन हो गई है। एक नवंबर में इटावा से लाया गया है, जबकि एक पहले से है।
17 जनवरी को दुर्लभ गिद्ध के दूसरे साथी को भी वनविभाग ने पकड़ लिया। उन्हें अगल बगल के पिंजरे में रखा है। चिड़ियाघर में डॉक्टर अनुराग सिंह दोनों गिद्धों की देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 15 दिनों के लिए दोनों गिद्धों को क्वारंटाइन किया गया है। डॉ अनुराग ने कहा, हम हिमालयन गिद्ध को तनाव कम करने की दवाई के साथ-साथ विटामिन दे रहे हैं। उन्होंने कहा, गिद्ध के जोड़े को अलग रखा गया है, क्योंकि दोनों काफी दिनों तक अलग रहे हैं और दोनों दुर्लभ हिमालयी ग्रिफॉन गिद्ध तनाव में है।इस खबर के मुताबिक दोनों गिद्ध नर हैं या मादा इसकी पुष्टि थोड़ी मुश्किल है, लेकिन जब डीएनए टेस्ट होगा तभी लिंग की जानकारी मिलेगी। फिलहाल दोनों गिद्धों को पिंजरे में रखा जाएगा, इसके बाद नियमानुसार फैसला लिया जाएगा।
घटती संख्या के बीच शहर में इस जोड़े के देखे जाने से वन विभाग और पक्षी प्रेमी उत्साहित हैं। एक स्थानीय ने बतायाः ‘‘गिद्ध यहां एक सप्ताह से था। हमने इसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। अंत में जब यह नीचे आया तो हमने इसे पकड़ लिया।‘‘ इसके तुरंत बाद वन विभाग को इसकी सूचना दी गई और गिद्ध को उनके हवाले कर दिया गया। यह जोड़ा एक हफ्ते से वहीं था। उन्हें कोई परेशानी नहीं हो रही थी और वे अपना प्रवास काल व्यतीत कर रहे थे। स्थानीय लोगों ने उन्हें पकड़ने के बारे में क्यों सोचा? अगर उन्हें ऐसा लगता भी था तो उन्होंने वन विभाग को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी? बचाव शब्द का प्रयोग क्यों किया जा रहा है? कुत्तों से बचाते तो कुत्तों को भगा सकते थे। गिद्ध बीमार नहीं थे, न ही वे घायल हुए थे। आप एक खुले आसमान मे उची उड़ान भरने वाले जीवित पक्षी को बलपूर्वक पकड़कर उसे बचाव नहीं कह सकते। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि लोग बेचारे गिद्ध को कितनी बुरी तरह से पकड़ रहे हैं. उन्होंने पैरों को बांध रखा है और बलपूर्वक पंख फैला रहे हैं। पक्षी बहुत आघात में है। इन लोगों का असंवेदनशील व्यवहार प्रकृति प्रेमियों के लिए असहनीय है और इस अमानवीय धटना को बचाव कार्य के रूप में उजागर करना और भी शर्मनाक है। यह घटना एक ऐसा मामला है जहां हम बिना जाने कुछ करना शुरू कर देते हैं। जैसे की ‘‘श्वेत गिद्ध‘‘ जैसा कुछ नहीं है।
सर्दियों में पक्षियों के लिए प्रवास एक सामान्य प्रक्रिया है। हिमालयी ग्रिफॉन गिद्ध उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में प्रवासी गिद्ध हैं। वे नवंबर के अंत में आना शुरू करते हैं और मार्च-अप्रैल तक यहां रहते हैं। वे हमारे मेहमान हैं। गिद्धों की खाने की आदतें अलग होती हैं और पाचन तंत्र भी अलग होता है। ये बिना भोजन के कई दिनों तक जीवित रह सकते हैं। इसलिए यदि गिद्ध का जोड़ा एक सप्ताह से वहां था, तो यह सामान्य व्यवहार है। जंगली कुत्तों की बात करें तो वे गिद्धों सहित कई प्रजातियों के लिए एक गंभीर खतरा हैं। यदि स्थानीय लोग जंगली कुत्तों से हमलों के लिए चिंतित होते, तो वे आकाश के स्वामी-गिद्ध को कैद करने के बजाय अन्य समाधान कर सकते थे। लेकिन वे ‘‘खतरे के करीब‘‘ गिद्ध के साथ तस्वीरों के लिए अधिक रुचि रखते दिख रहे हैं। उनको गिद्ध की पीड़ा से तनिक भी मतलब नही. असहाय गिद्ध उनके अत्याचारों के हिम्मत हर चुका है. जब हम किसी पक्षी को बचाते हैं तो उसके चेहरे को कपड़े से ढक देना चाहिए ताकि पक्षी इंसानों को देखकर आघात में न पड़ जाए। पंखों को सावधानी से संभाला जाना चाहिए ताकि पक्षी मुक्त होने के लिए संघर्ष करने की कोशिश करके खुद को चोट न पहुँचाए।
गिद्ध को वन विभाग को सौंप दिया गया है और अब उसे चिड़ियाघर में रखा गया है। क्यों? यकीन नही होता की हम इतनी अवैज्ञानिक और अस्वाभाविक बातें कर सकते हैं। हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध हिमालय पर्वतमाला की अगम्य चट्टानों में प्रजनन करते हैं। स्वस्थ पक्षी को कैद में रखना उचित नहीं है।हम कब तक और कितने गिद्धों को कैद में रख पाएंगे? हमें उनके लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता है। गिद्ध संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर काम किए बिना हम इसे हासिल नहीं कर सकते। हमें भोजन की उपलब्धता की समस्या को हल करने की आवश्यकता है, हमें प्राकृतिक प्रजनन स्थलों जैसे की बड़े पुराने पेड़ों और चट्टानों की रक्षा करने की आवश्यकता है, और सबसे महत्वपूर्ण हमें स्थानीय जनता को जागरूक करने और संरक्षण मे शामिल करने की आवश्यकता है। हमें विभिन्न विभागों के साथ समन्वय करने की आवश्यकता है। कानपुर के इस मामले को गिद्धों का बचाव नहीं कहा जा सकता है। यह वास्तव में उनके लिए अनावश्यक परेशानी थी जो अंततः आजाद पक्षी के कैद होने पर समाप्त हो गई लेकिन इस गलती को सुधारा जा सकता है। जल्द से जल्द पकड़े हुए गिद्ध के सामान्य स्वास्थ्य जांच कर के उसके वास्तविक घर यानी की प्रकृति में छोड़ दिया जाना चाहिए।
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ आरके सिंह का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में बर्फीले तूफान के कारण अक्सर ये गिद्ध भोजन की तलाश में ऐसे इलाकों में चले आते हैं, जहां सर्दी होती है। सितंबर के बाद अक्सर ये यूपी में मंडराते देखे जा सकते हैं।
’जानें इस पक्षी के बारे में’
●विलुप्त पक्षियों में शामिल है हिमालयन ग्रिफ्फन
●हिमालय की 13 हजार फुट ऊंचाई पर मिलते
●कानपुर में मिले गिद्ध की ऊंचाई करीब दो फुट
●15 किलो वजन बताया गया जू में रखे गिद्ध का
●एक पंख से दूसरे पंख की दूरी पांच फुट नापी
●आहार शृंखला के सर्वोच्च स्थान पर आंका गया
●इस गिद्ध के पंजे काफी बड़े और सिर सफेद है
●बजरिया स्थित कब्रिस्तान के पास लोगों ने पकड़ा
●भोजन की तलाश में कई दिन से मंडरा रहा था जोड़ा
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