TreeTake Network
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि भारत की परम्परा सदैव से पर्यावरण हितैषी रही है। दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद हैं। अथर्ववेद का सूक्त ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ हमें इस धरती के प्रति अगाध निष्ठा को प्रदर्शित करने के संस्कारों के साथ जोड़ता है। इसका अर्थ है कि धरती हमारी माता है और हम सब उसकी संतान हैं। एक पुत्र का मां के प्रति क्या कर्तव्य है, यह बताने की आवश्यकता नहीं होती है। सम्पूर्ण जीव जगत में मां के प्रति प्रकृति प्रदत्त स्वभाव व संस्कार देखने को मिलता है, और यहीं से धरती माता के प्रति हमारे दायित्व निर्धारित होते हैं।
मुख्यमंत्री ‘नेशनल क्लाइमेट काॅन्क्लेव-2023’ के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने तथा केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने दो दिवसीय ‘नेशनल क्लाइमेट काॅन्क्लेव-2023’ का उद्घाटन 10 अप्रैल को किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान केन्द्र का बटन दबाकर शुभारम्भ भी किया। इस अवसर पर उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए जनपद आगरा तथा गोरखपुर के प्रतिनिधियों, कृषि वानिकी के क्षेत्र में जनपद बाराबंकी के प्रगतिशील कृषक मनोज कुमार शुक्ला तथा बाॅयोफ्यूल के रूप में चीनी उत्पादन के अपशिष्ट से एथेनाॅल निर्माण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने के लिए संजय आर भूसरेड्डी, अपर मुख्य सचिव चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास कृो सम्मानित भी किया। उन्होंने इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी का उद्घाटन कर अवलोकन किया।
‘नेशनल क्लाइमेट काॅन्क्लेव-2023’
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन वर्तमान की एक चुनौती है। असमय अतिवृष्टि तथा बाढ़ की समस्या जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की ओर हम सबका ध्यान आकर्षित करती है। अपने स्वार्थ के लिए मनुष्य ने पर्यावरण को अतिदोहित कर प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया है। उन दुष्प्रभावों के हम सब भुक्तभोगी बन रहे हैं। इसी चुनौती के बीच में रास्ता भी निकालना होगा। यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। दुनिया में जहां कहीं भी इन मुद्दों पर चर्चा हो रही है, भारत उसमें अहम भूमिका निभा रहा है। देश के कुल क्षेत्रफल का जितना भूभाग उत्तर प्रदेश में है, उसकी तुलना में प्रदेश की आबादी बहुत ज्यादा है। इतनी अधिक आबादी प्रदेश में मनुष्यों के जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों के कारण है। प्रदेश में उपजाऊ भूमि एवं पर्याप्त जलसंसाधन है। एक समय यहां पर्याप्त वन आच्छादन भी था। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई, वन कटते गये। वर्ष 2017 में हमारी सरकार ने वन विभाग को व्यापक रूप से वृक्षारोपण के लक्ष्य के साथ वन महोत्सव के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए निर्देशित किया। पहले वर्ष 5 करोड़ वृक्षारोपण के लक्ष्य को लेकर कार्यक्रम शुरू किया गया। अगले वर्ष यह लक्ष्य बढ़ाकर 10 करोड़ वृक्षारोपण किया गया। विगत 6 वर्षों में उत्तर प्रदेश में 135 करोड़ वृक्षारोपण का कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। इसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। विगत 6 वर्षों में उत्तर प्रदेश का वनाच्छादन बढ़ा है। प्रदेश के आम नागरिक के मन में यह भाव उत्पन्न हुआ है कि वृक्ष को काटना नहीं है, बल्कि हमें उसकी सुरक्षा करनी है। इस वर्ष भी जुलाई के प्रथम सप्ताह में प्रदेश सरकार वन विभाग को नोडल विभाग बनाते हुए अन्य विभागों को सहयोग से एक ही दिन में 35 करोड़ वृक्षारोपण के वृहद अभियान को आगे बढ़ाएगी। इसकी तैयारियां अभी से की जा रही हैं। नर्सरियां तैयार की जा रही हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण के लिए अनेक अभियान देश में प्रारम्भ किए हैं। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रदेश में 8 हजार से अधिक अमृत सरोवर बनाने का कार्य सम्पन्न हुआ है। लोगों ने बड़े उत्साह के साथ इस अभियान में हिस्सा लिया है। वन विभाग ने भी जल संरक्षण के लिए अनेक कार्यक्रम शुरू किये हैं। इसमें अमृत सरोवरों के निर्माण के साथ ही व्यापक पैमाने पर वृक्षारोपण के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में 100 वर्ष से अधिक पुराने वृक्षों को विरासत वृक्ष के रूप में मान्यता देकर उन वृक्षों के संरक्षण के अभिनव प्रयास के रूप में एक बड़े अभियान को आगे बढ़ाया गया है। हमारे पूर्वज बहुत दूर-दृष्टा थे। वे अच्छे फलदार पौधे लगाते थे। उन्हें बड़ा होने में समय लगता था, लेकिन सैकड़ों वर्षों के बाद आज भी वे वृक्ष फल दे रहे हैं। मुख्यमंत्री ने जनपद गोरखपुर में श्रीगोरक्षनाथ मन्दिर परिसर में लगे आम के एक वृक्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि वह वृक्ष आज भी फल दे रहा है। वर्ष 1907 में उस वृक्ष के नीचे बद्रीनाथ धाम के सिद्ध योगी सुन्दरनाथ तथा गोरक्षपीठ के सिद्ध योगी योगिराज बाबा गम्भीरनाथ के मध्य संवाद हुआ था। वह वृक्ष आज भी उसका गवाह है। भारत की आध्यात्मिक चेतना और क्रान्ति के पवित्र संगठन भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द जी ने वर्ष 1912 में उसी आम के वृक्ष के नीचे योगिराज बाबा गम्भीरनाथ जी से दीक्षा ली थी। आज भी उस वृक्ष की जीवन्तता, भव्यता और दिव्यता देखने को मिलती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सब भी आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की विरासत की इस परम्परा को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। बहुत से ऐसे वृक्ष होंगे, जिनके नीचे बैठकर क्रान्तिकारियों ने देश की आजादी की रणनीति तय की होगी। इन वृक्षों के संरक्षण के लिए हमारे स्तर पर भी नये कार्यक्रम प्रारम्भ हो सकते हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश, देश में सर्वाधिक एथेनाॅल का उत्पादन कर रहा है। प्रदेश में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अनेक सम्भावनाएं हैं। इस क्षेत्र में भी प्रदेश की अपनी पाॅलिसी है। प्रदेश सरकार ने नेट मीटरिंग और नेट बिलिंग के कार्यक्रम को मान्यता देते हुए नवीकरणीय ऊर्जा को तेजी के साथ आगे बढ़ाया है। जब सरकार, समाज व इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ मिलकर अभियान चलाएंगे, तो इसके परिणाम भी सामने आएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से प्रकृति और पर्यावरण को बचाने की आवश्यकता है। हमारी ऋषि परम्परा ने धरती माता के प्रति अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए एक पुत्र के रूप में जो कर्तव्य सौंपे हैं, उन पर पूरी ईमानदारी के साथ आगे बढ़ना होगा, तभी जीव सृष्टि तथा मानव सृष्टि की रक्षा हो पाएगी। आज देश व प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनेक अच्छे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। नमामि गंगे परियोजना के अच्छे परिणाम सामने आये हैं। गंगा की पहचान गांगेय डाॅल्फिन से थी। वर्ष 2017 से पूर्व गंगा नदी से डाॅल्फिन लुप्तप्राय सी हो गयी थी। आज प्रयागराज से मिर्जापुर के बीच तथा वाराणसी से बक्सर के बीच गांगेय डाॅल्फिन फिर से देखने को मिलती है। पहले कानपुर में 14 करोड़ लीटर सीवर गंगा जी में उड़ेला जाता था। आज एक भी बूंद सीवर गंगा जी में नहीं जाता है। नदी को किसी भी प्रकार के प्रदूषण से मुक्त करने के कार्यक्रम प्रदेश में लागू किये गये हैं। प्रकृति तथा पर्यावरण के प्रति अपने उत्तरदायित्व के निर्वहन में हम भी खरा उतर सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के प्राकृतिक खेती के आह्वान पर प्रदेश में इस दिशा में कार्य प्रारम्भ हुए हैं। गो आधारित खेती से गोमाता की रक्षा के साथ ही खेती को विषमुक्त भी किया जा सकेगा। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए गंगा जी के तटवर्ती 27 जनपदों में तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्राकृतिक खेती के लिए विशेष इन्सेंटिव देते हुए प्रदेश सरकार कार्य कर रही है। आज प्रदेश में जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के कार्य को 01 लाख 30 हजार हेक्टेयर भूमि में लागू किया जा चुका है और तेजी के साथ इन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया जा रहा है। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना के सभी लाभार्थियों को आवास के साथ ही, सहजन का पौधा भी दिया जाता है। सहजन की फली प्रोटीन युक्त होती है। सहजन से परिवार को पर्याप्त मात्रा में सब्जी तथा पोषण प्राप्त होता है। इसके साथ ही कुपोषित परिवारों को निराश्रित गोआश्रय स्थलों से एक-एक दुधारू गाय उपलब्ध करायी जाती है। उस गाय के लालन पालन के लिए 900 रुपये प्रतिमाह उस परिवार को उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके अच्छे परिणाम सामने आये हैं। गाय की रक्षा भी हो रही है, साथ ही परिवार भी कुपोषण से मुक्त हो रहा है। मुख्यमंत्री जी ने दो दिवसीय नेशनल क्लाइमेट काॅन्क्लेव की सफलता के लिए विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप यह काॅन्क्लेव किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर प्रत्येक देशवासी को पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए जागरूक करने में सफल होगा।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वन्य व प्रकृति प्रेमी होने तथा उनकी सक्रियता से पिछले वर्ष राज्य के रानीपुर अभ्यारण्य को देश के टाइगर रिजर्व में सम्मिलित किया गया। उत्तर प्रदेश में टाइगर रिजर्व की संख्या बढ़कर 3 हो गई है। इसमें दुधवा, पीलीभीत और रानीपुर सम्मिलित हैं। गंगा और शिवालिक क्षेत्र के टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या वर्ष 2018 में 646 थी। प्रदेश सरकार के प्रयासों से यह अब बढ़कर 804 हो गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री को उत्तर प्रदेश का देश का नम्बर वन एथेनाॅल उत्पादक राज्य होने के लिए बधाई देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश बन रहा है। प्रधानमंत्री जी के स्वर्णिम भारत के विजन में उत्तर प्रदेश के जलवायु कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ज्ञातव्य है कि नेशनल क्लाइमेट काॅन्क्लेव-2023 का आयोजन भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा सम्मिलित रूप से किया गया है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि हम सब प्रकृति का लाभ तो ले रहे हैं पर उसके प्रति हमारा क्या योगदान है। इस बात पर विचार नहीं हो रहा है। जरूरत इस बात की है कि हम सब बढ़ती समस्या के समाधान में भागीदार बने और प्रकृति के लिए समस्या नही, समाधान बने। उन्होंने कहा कि प्रकृति के संवर्धन और संरक्षण के लिए सभी बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। हम सब प्रकृति का लाभ तो ले रहे हैं। पर उसके प्रति योगदान पर विचार नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन करना कोई एहसान नहीं है। महाना ने कहा कि जब से मानव ने प्रकृति का सम्मान करना बंद कर दिया तब से प्रकृति हमसे नाराज होने लगी है। पहले हम पेड़ पौधों और गंगा की पूजा करते थे। पर धीरे धीरे अब सब भूलते जा रहे हैं। हमने जब तक गंगा नदी की पूजा की तब तक गंगा जी हम पर प्रसन्न रही जब से हमने गंगा वह हमसे हमसे रूठ गई। महाना ने प्रकृति के बदलते स्वरूप पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हम प्रकृति से केवल लेना नहीं बल्कि कुछ देना भी सीखें। बदलते समय में हमारी प्रवृत्ति सब कुछ पाने के लिए हो गयी है। इसके साथ ही प्रकृति पर हमारा कितना अधिकार है, इसके ऊपर विचार जिस समय कर लेंगे तो समस्या का समाधान हो जायेगा।
इस अवसर पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अरुण कुमार सक्सेना, राज्य मंत्री के0पी0 मलिक, सलाहकार मुख्यमंत्री अवनीश कुमार अवस्थी, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव लीना नन्दन, अपर मुख्य सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मनोज सिंह, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री, गृह एवं सूचना संजय प्रसाद, प्रधान मुख्य वन संरक्षक ममता संजीव दुबे, डायरेक्टर कण्ट्री प्रोग्रामिंग डिवीजन ग्रीन क्लाइमेट फण्ड कैरोलीना फ्यूंटेस सहित विभिन्न प्रदेशों के पर्यावरण एवं वन विभाग के अधिकारी तथा डेलिगेट्स उपस्थित थे।
Leave a comment