Talking Point
विश्व ऊंट दिवस, 22 जून, विशेष
डॉ. मोनिका रघुवंशी व डॉ. सोनिका कुशवाहा
भारतीय जैवविविधता में राजस्थान का अपना विशेष स्थान है। रेगिस्तान में अद्भुत अनुकूलन के कारण राज्य पशु ऊंट काफी प्रसिद्ध है । राजस्थानी ऊँट का वैज्ञानिक नाम कैमलस ड्रोमेडेरियस है। राजस्थान सरकार ने 30 जून 2014 को ऊँट को राजस्थान के राज्य पशु का दर्जा दिया था। जिसकी घोषणा 19 सितम्बर 2014 को बीकानेर में की गई। भले ही ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता हो लेकिन असम से लेकर केरल कर्नाटक तक और गुजरात से लेकर हरियाणा पंजाब तक देश के अनेक राज्यों में ऊंट पाए जाते हैं। भारत सरकार द्वारा दिसंबर महीने में संसद में दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में इनकी कुल संख्या 2012 की पशुधन गणना में 1.17 लाख घटकर चार लाख थी जो 2019 की गणना में 1.48 लाख और घटकर 2.52 लाख रह गई। साल 2019 की पशुगणना में अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, मेघालय व नागालैंड में ऊंट की संख्या आधिकारिक रूप से शून्य हो गई जबकि पांच साल पहले यानी 2012 में इन राज्यों में क्रमशः 45, 03, 07 व 92 ऊंट थे। देश के लगभग 85 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके बाद गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश का नंबर आता है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार राजस्थान में 2012 में ऊंटों की संख्या 3,25,713 थी जो 2019 में 1,12,974 घटकर 2,12,739 रह गई।
पर्यावरण ने हमेशा प्रजातियों को सामंजस्य हेतु अनुकूल व विभिन्न विशेषताएं व साधन प्रदान किए हैं। अतः मरुस्थल में सफलतापूर्वक जीवन यापन के लिए ऊंट में विशेष संरचनाएं व शक्तियां व्याप्त है। राजस्थान में विशेषतया ऊंट की 3 प्रमुख प्रजातियां पाई जाती हैंः बीकानेरी ऊंट, जैसलमेरी ऊंट तथा मेवाड़ी ऊंट। विभिन्न प्रजातियों की शारीरिक संरचनाओं में विविधता पाई जाती है। ऊंट की टांगें लंबी होती हैं, जिसमें आगे की दो टांगे मजबूत व सीधी होती हैं तथा पीछे की दो टांगे अपेक्षाकृत कमजोर व आगे की तरफ थोड़ी मुड़ी होती हैं ताकि बैठने में आसानी हो। ऊंट की लंबाई औसतन 1.85 मीटर से लेकर 2.15 मीटर तक होती है। कूबड़ की लंबाई 30 इंच के लगभग होती है। ऊंट विशालकाय जीव है जिसमें नर का भार 500 से 700 किलोग्राम तक होता है तथा मादा का भार औसतन 400 से 600 किलोग्राम होता है। ऊंट की औसत आयु 40 से 50 वर्ष के आसपास होती है। ऊंट का गर्भाशय काल प्रायः 400 दिन होता है। ऊंट की तीव्र गति 65 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है परंतु लंबी यात्रा के समय ऊंट 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलता है।
मरुस्थलीय विशेषताएं
ऊंट विशालकाय होने के कारण गर्मी व तेज धूप में भी जीवित रह लेता है। उसकी त्वचा के नीचे वसा की मात्रा नहीं होती जिसके कारण वह शरीर की अत्यधिक गर्मी बाहर निकालने में जल्दी सक्षम है। ऊंट की शारीरिक सरंचना बहुत ही मजबूत होती है जिससे वह 181 किलोग्राम तक का वजन भी उठा सकते हैं। ऊंट के वक्ष स्थल व टांगों के घुटनों पर गद्देदार बालों वाली त्वचा होती है जिससे बैठने में सुलभता प्राप्त होती है। बैठने पर ऊंट के वक्ष स्थल तथा टांगों के घुटने ही जमीन के संपर्क में आते हैं अन्य भाग थोड़ी ऊंचाई पर रहते हैं। ऊंट लेट कर सोते हैं। ऊंट के पंजों की हड्डियां फैली हुई, चपटी व गद्देदार त्वचा से ढकी होती हैं। विशालकाय ऊंट जब चलता है दबाव पंजों की हड्डियों पर पड़ता है जिस कारण वह फैल जाती हैं व जमीन पर पकड़ बनाने में अधिक सक्षम हो जाती हैं। इस कारणवश ऊंट रेगिस्तान में सुलभता से चलने में सक्षम है तथा रेगिस्तानी जहाज के रूप में भी वर्णित है। ऊंट के सिर व गर्दन बहुत ही मजबूत तथा होंठ संवेदनशील होते हैं जिससे वृक्षों से पेड़ पत्तियां खाते समय कांटे नहीं चुभते। ऊंट शाकाहारी प्राणी ही है व मरुस्थलीय वृक्ष कंटीले होते हैं परंतु ऊंट के मुंह व होंठ की बनावट व खाने की कला के कारण उसे कांटे नहीं चुभते। ऊंट की आंखों की बनावट इस प्रकार है कि भौंह बड़ी व बालदार होती हैं जो तेज धूप व रेत से आंखों के बचाव का कार्य करतीं हैं। ऊंट की भौंह 10 इंच तक होती हैं ताकि आंखों की सुरक्षा कर सकें। ऊंट के कान पर बाल भी सुरक्षा प्रदान करने के लिए होते हैं। ऊंट की देखने व सुनने की क्षमता तीव्र होती है। ऊंट के बाल सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करते हैं जिसके कारण शरीर में तापमान नियंत्रित रहता है। ऊंट में कूबड़ फैट एकत्र करने के लिए होता है जो जन्म के समय पर नहीं होता। जब ऊंट खाना ग्रहण करने में सक्षम हो जाता है तब उसका कूबड़ बढ़ने लगता है। यदि फैट कम होने लगता है तो कूबड़ का आकार छोटा हो जाता है।
ऊंट सर्दियों में 6 से 7 महीने तक बिना पानी पिए रह सकते हैं परंतु जब पानी पीते हैं तो 151 लीटर तक पानी पी जाते हैं अन्य जीवों में यदि पानी की मात्रा 25ः से कम हो जाती है तो वह कमजोर होने लगते हैं परंतु ऊंट 15ः से कम पानी होने पर भी जीवित रह सकते हैं। भोजन न मिलने पर 40ः से कम वजन होने तक भी जीवित रह सकते हैं।
ऊंट की घटती आबादी
1. चराई क्षेत्रों का कम होना- इसके भी अनेक कारण हैः
वन विभाग द्वारा चरागाहों को संरक्षित क्षेत्र में सम्मिलित करना. वन विभाग द्वारा चरागाहों पर चराई के संबंध में प्रतिबंध बढ़ते जा रहे है। पहले, ऊंटों को लगभग 2 महीने तक वन क्षेत्र में रहने की अनुमति थी, लेकिन अब यह वन विभाग द्वारा प्रतिबंधित कर दिया है।
नलकूपों से सिंचाईःहरित क्रांति के आगमन से किसानों ने नलकूपों के माध्यम से सिंचाई शुरू कीं. इन नलकूपों के माध्यम से पानी की पूर्ति केवल 6-7 साल तक हो पाती है जिसके बाद किसान दूसरी भूमि पर खेती करने चले जाते हैं। बिना किसी वनस्पति आवरण के यह छोड़ी गयी भूमि शुष्क हो जाती है और चरने के लिए अपर्याप्त रहती है।
शहरी विकासःतेजी से शहरीकरण के साथ, आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण के लिए घास के मैदानों को नष्ट कर दिया गया है।
2. आधुनिक कृषि तकनीकों के उपयोग से खेती में ऊंटों का उपयोग काफी कम हो गया है। कृषि के क्षेत्र में उर्वरकों और अन्य उन्नत तकनीकों के बढ़ते उपयोग के कारण, किसानों ने ऊँट के मूत्र और मल के लाभों की उपेक्षा करना शुरू कर दिया है जो कृषि भूमि के पोषण के रूप में काम करते हैं। इसने न केवल मिट्टी की उर्वरता को कम किया है बल्कि ऊंटों के महत्व को भी कम किया है।
3. ऊंटों में विभिन्न रोगः ऊंटों की संख्या में कमी होने का एक अन्य कारण है उचित पशु चिकित्सा का आभाव. ऊंट मुख्य रूप से त्वचा की बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिनमें मेंज भी शामिल है, जो हालांकि इतनी खतरनाक नहीं है, लेकिन अगर उन्हें अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो यह हानिकारक हो सकता है। इसके अलावा, इन रोगों के लिए दवाएं सरलता से उपलब्ध नहीं हैं और इनकी कीमत भी अधिक है जो प्रजनकों की कठिनाइयों को और बढ़ा देती है। राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग ने राज्य भर में 7,897 पशु चिकित्सा संस्थानों की स्थापना की है, जिसमें पॉलीक्लिनिक, पशु चिकित्सालय, उप-केंद्र और जिला मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां शामिल हैं। लेकिन इन संगठनों की सेवाएं सीमित हैं और सभी गांवों तक नही पहुच पाते.
4. आर्थिक लाभ की कमीः ऊंटों द्वारा आर्थिक लाभ में भारी कमी आई है। सबसे पहले तो झुंड के भरण-पोषण के लिए बड़ी मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है। दूसरा, विकसित प्रौद्योगिकी के कारण विभिन्न उद्देश्यों के लिए ऊंटों का उपयोग काफी हद तक कम हो गया है।
5. इस तथ्य के बावजूद कि दुग्ध उद्योग भारत में मुख्य व्यवसायों में से एक है,ऊंट के दूध का उपयोग करने का विकल्प अभी तक नहीं खोजा है। ऊंटनी के दूध का कोई संगठित बाजार नहीं है और यह कम वसा वाला दूध होने के कारण, इसकी कीमत मात्र 18-20 रूपए प्रति लीटर है।
क्या है राजस्थान ऊंट (वध निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 2015
राजस्थान के राजकीय पशु ऊंट की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट आई है, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2012 से 2019 तक ऊंटों की संख्या में 35ः की गिरावट का अनुमान है। स्थानीय ऊंट प्रजनकों का कहना है कि वास्तविक संख्या और अधिक कम होगी. राजस्थान ऊंट (वध का निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 2015, जिसे राज्य पशु की रक्षा के लिए रखा गया था वास्तव में गिरावट के कारणों में से एक है। राज्य की सीमा के बाहर व्यापार पर प्रतिबंध ने ऊँटों की कीमत में भारी कमी लायी है, जिससे उनके पालको के लिए निर्वाह जटिल हो गया है अतः वे अपने जानवरों को छोड़ रहे हैं, या निराश हो कर अवैध व्यापार का सहारा ले रहे हैं। पशुपालकों का कहना है कि इस कानून के आने से राज्य के ऊंट पालन घाटे का सौदा हो गया और पशुपालकों के मुंह मोड़ लेने के कारण इनकी संख्या घट रही है।
ऊंटों की स्थिति और संख्या में सुधार के लिए सुझाव
प्रजनकों के लिए चरागाह भूमि की आसान और पर्याप्त उपलब्धता । चराई क्षेत्रों को सुरक्षित करना, स्थापित करना, बनाए रखना
ऊंटनी के दूध को बढ़ावा देना व स्थायी बाजार स्थापित करना
राजस्थान ऊंट (वध निषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 2015 में संशोधन
ऊंट प्रजनकों के लिए सस्ती और बेहतर चिकित्सा सुविधाएं।
लोगो को ऊंट के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उसके वास्तविक महत्व और क्षमता को उजागर करने के लिए हर साल 22 जून को विश्व ऊंट दिवस मनाए
डॉ अब्दुल रजीक कक्कड़ विश्व ऊंट दिवस के संस्थापक हैं। डॉ अब्दुल रजीक कक्कड़ विश्व ऊंट दिवस के संस्थापक हैं। पहला विश्व ऊंट दिवस 22 जून 2009 में शुरू किया गया था। एक छोटा सा एक दिवसीय सेमिनार आयोजित किया गया था, जिसमें डॉ रजीक ने ऊंट के महत्व, इसके इतिहास, संस्कृति में इसकी भूमिका, खाद्य सुरक्षा आदि के बारे में एक विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने बलूचिस्तान प्रांत के नीति निर्माताओं को आमंत्रित किया और क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा में ऊंटों की भूमिका पर जोर दिया। बाद में, हर साल कई और लोग शामिल हुए और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विश्व ऊंट दिवस मनाया जाने लगा।
विश्व ऊंट दिवस क्यों?
क्योंकि ऊँट के महत्व को अभी तक अच्छी तरह से समझा नहीं गया है और ना ही इन शाकाहारी जीवों के महत्व को पहचाना और सराहा गया है। नीति निर्माताओं और आम लोगो के बीच ऊंट को पिछड़े जानवर का दर्जा ही मिला है। विश्व ऊंट दिवस ऊंट की सही कीमत और क्षमता को उजागर करने और नीति निर्माताओं को ऊंट को अनुसंधान और विकास नीतियों में उचित स्थान देने के लिए मनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऊंटनी के दूध को प्राकृतिक औषधि माना जाता है लेकिन फिर भी लोगों को इसे जानने और समझने की जरूरत है। ऊँट के महत्व को उजागर करने के लिए हमें एक ऐसे दिन की बेहद आवश्यकता है जिससे हम ऊँट की पहचान और सराहना के लिए संयुक्त रूप से प्रयास कर सकें।
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