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महुआ के फूल की बहार मार्च-अप्रैल में आती है और मई-जून में इसमें फल आते हैं। इसके पेड़ के पत्ते, छाल, फूल, बीज की गिरी सभी औषधीय रूप में उपयोग की जाती है। इसके पत्ते हथेली के आकार और बादाम के जैसे मोटे होते हैं। महुआ की लकड़ी बहुत वजनदार और मजबूत होती है। इसे खेत, खलिहानों, सड़कों के किनारों पर और बगीचों में छाया के लिए लगाया जाता है। महुआ का फूल सफेद, कच्चे फल हरे रंग के और पकने पर पीले तथा सुखने पर लाल व हलके मटमैले रंग के हो जाते है। महुआ के फलों मे शहद जैसी महक होती है। इस पेड़ की तासीर ठंडी होती है। संस्कृत में इस पेड के संदर्भ में यह कहा गया है की महुआ के काढे (जडे, तना, पत्ते, फूल और फल) का रोजाना सेवन करने से व्यक्ति का शरीर जीवन भर निरोगी रहता है। महुआ वात, गैस, पित्त और कफ को शान्त करता है और रक्त को बढाता है। घाव को जल्दी भरता है। यह पेट के विकारों को भी दूर करता है। यह खून में खराबी, सांस के रोग, टी.बी., कमजोरी, खाँसी, अनियमित मासिक धर्म, भोजन का अपचन स्तनो मे दुध की कमी तथा लो-ब्लड प्रेशर आदि रोगो को दूर करता है। महुआ में कैल्शियम, आयरन, पोटॅश, एन्जाइम्स, एसिडस आदि काफी मात्रा में होता है। पत्तों में क्षाराभ, ग्लूकोसाइड्स, सेपोनिन तथा बीजों में 50-55 प्रतिशत स्निग्ध तेल निकलता है, जो मक्खन जितना चिकना होता है। इसके फूलों में 60 प्रतिशत शर्करा होती है। इसके फूलों के अंदर अत्यंत मीठा-गाढ़ा, चिपचिपा रस भरपूर होता है। मिठास के कारण मधुमक्खियाँ इसे घेरे रहती हैं। फूलो के अंदर जीरे जैसे कई बीज होते है जो अनुपयोगी है। इसका पेड़ उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात तथा महाराष्ट्र में अपने आप ही उग जाता है तथा कुछ लोग इसकी खेती भी करते है। जहाँ महुआ के पेड़ बहुतायत में हैं, वहाँ फूल पर्याप्त मात्र में मिलते हैं। गरीब तथा आदिवासी लोग इनको इकट्ठा कर लेते हैं। सुखाकर भोजन तथा अन्य में कई रूपों में इसका इस्तेमाल करते हैं। स्थानीय व्यापारी इन लोगों से सूखे फूल तथा बीज बड़े सस्ते में खरीद लेते हैं। महुआ के फूलों का अधिक मात्रा मे सेवन करने से या इसके फूलो की महक देर तक सूंघने से मदहोशी, सिरदर्द शुरु हो जाता है। परंतु इस साइड इफेक्ट को दूर करने में धनिया का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्रों में महुआ अनेक रोगों के सफल इलाज में कारगर है। कफजन्य रोगों में यह बहुत उपयोगी है। सर्दी की शिकायत में महुए के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करना चाहिए या फूलों को दूध में उबालकर पीना चाहिए, साथ ही फूले हुए फूलों को अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए। महुए के ताजा या सूखे फूल, लौंग, कालीमिर्च, अदरक या सौंठ इन सबको एक जगह पीसकर इसका काढ़ा बनाएँ। हलका गरम काढ़ा पीकर कपड़ा ओढ़कर लेट जाएँ। इससे जुकाम-सर्दी में बड़ी राहत मिलती है। साथ ही सर्दी से होने वाला बुखार भी उतर जाता है। दर्द, वायुदर्द-शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो, जोड़ों का, वायु का दर्द या मांसपेशियों में दर्द अथवा पसलियों में दर्द हो तो प्रभावित अंग अथवा स्थान पर महुए के तेल की मालिश कुछ दिनों तक करनी चाहिए। किसी भी तेल की मालिश करने के बाद ठंडे स्थान पर न बैठे। जिन स्त्रियों को पीरियड समय पर न आकर आगे-पीछे आता हो अधिक कष्टकारक हो या कम-ज्यादा मात्रा में आता हो तो इसके आने के एक सप्ताह पहले से महुए के फूलों का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह शाम सेवन करना चाहिए। स्तनपान करानेवाली महिलाओं तथा नव प्रसूता स्त्रियों को पर्याप्त मात्रा में दूध न उतरता हो तो महुए के ताजा फूलों का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। ताजा फूल उपलब्ध न रहने पर सुखाए हुए फूल किशमिश की तरह चबाकर खाने चाहिए। पुरानी खाँसी के मरीजों को महुआ के फूल के 15-20 दाने एक गिलास दूध में खूब उबालकर रात में सोने से पहले सेवन करने चाहिए। फूलों के बीच से जीरे जैसे दानो को निकाल देना चाहिए। दो सप्ताह के लगातार सेवन से पुरानी खाँसी भी ठीक हो जाती है। छोटे-बच्चों को सर्दी की शिकायत होती रहती है। इसमें नाक बहने लगती है। तथा पसलियाँ भी चलने लगती हैं, इसके लिए प्रभावित स्थान या पूरे शरीर की महुए के तेल से मालिश करनी चाहिए। घर में महुए का तेल अवश्य रखना चाहिए। साँप या विषैले कीड़े के काटने पर दंश स्थान पर महुआ के फूलों को बारीक पीसकर लेप कर देना चाहिए। इससे जहर का असर दूर हो जाता है। महुआ के फूलों का शहद (देसी) आँखों में लगाने से आँखों की सफाई हो जाती है। इससे आँखों की रौशनी बढ़ती है। आँखों की खुजली तथा इनसे पानी आना बंद हो जाता है। यह शहद बहुत गुणकारी होता है। महुआ की टहनी से दातून करने से दांत का हिलना बंद हो जाता है। और मसूडो से खून आना बंद हो जाता है। बीजों से निकाला तेल खाना बनाने तथा साबुन बनाने में उपयोगी है। इसकी खली को अच्छी खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। फल का बाहरी भाग सब्जी बनाकर खाया जाता है। अंदर के भाग को पीसकर आटा बना लिया जाता है। इसके फूलों से शराब बनाई जाती है जो एक गैर कानूनी काम है। सभ्यता की शुरुवात से ही सबसे पहले जनजाति के द्वारा महुआ के फूलों से देसी शराब का आविष्कार किया गया था, जो की उनके द्वारा एक औषधी के रुप में लिया जाता रहा है। सूखे फूल किशमिश के समान मिठाइयों, हलवा, खीर आदि व्यंजनों में भी डाले जाते है। फूलों को भिगोकर तथा बारीक पीसकर आटे के साथ गूंध लिया जाता है, फिर इसकी पूड़ियाँ तली जाती हैं, जो बहुत मीठी तथा स्वादिष्ट बनती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इसका काफी प्रचलन है। महुए से कफ सीरप तथा दूसरी कई दवाइयां बनाई जाती हैं।
दूब घास के औषधीय लाभ
औस बिखरी हरी दूब घास पर नंगे पांव चलने मात्र से आँखों की रोशनी तेज होती है और नेत्रों को सुरक्षात्मक शक्ति मिलती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार दूब स्वाद में कड़वी होती है, लेकिन शरीर को ठंडक देती है। दूब के रस के सेवन से रक्त विकार खत्म होते हैं। दूब घास के रस से शरीर की जलन और गर्मियों में लगने वाली अधिक प्यास का निवारण होता है। गर्भस्राव की समस्या में हरी दूब घास के रस से बहुत लाभ होता है। दूब घास का रस कफ प्रकोप को भी कम करता है। स्त्रियों में श्वेत प्रदर रोग में दूब घास के रस से बहुत लाभ होता है। गुर्दे में पथरी होने से प्रतिदिन दूब का रस सेवन करने से पथरी निकल जाती है। बेचैनी तथा जी मिचलाने में भी हरी दूब के रस से बहुत लाभ होता है। दूब में विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में होता है। दूब के रस के सेवन से आँखों की रोशनी में बहुत लाभ पहुंचता है। हरी मिर्च, टमाटर, प्याज व धनिये के साथ सलाद के रूप में दूब की हरी कोमल पत्तियों का सेवन करने से अत्यधिक पौष्टिक तत्त्व शरीर को प्राप्त होते हैं। दूब घास का रस, कपड़े द्वारा छानकर बूंद-बूंद आँखों में डालने से जलन के होने वाली लालिमा ठीक होती है। जलोदर, मिर्गी, उन्माद, पैत्तिक वमन,अधिक मात्रा में ऋतुस्राव होने पर दूब घास के रस के सेवन से बहुत लाभ होता है। दूब घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने में मदद करती हैं। इसमें मौजूद एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल गुणों के कारण यह शरीर की किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा दूब घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को एक्टिव और एनर्जीयुक्त बनाये रखने में बहुत मदद करती है। यह अनिद्रा रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में भी प्रभावकारी है। दूब घास एक डिटॉक्सिफायर के रूप में काम करती है जिससे शरीर से जहरीले तत्वों को भी निकालकर एसिड को कम करती है। सिरदर्द में दूब को पीसकर इसे चंदन की तरह माथे पर लगायें काफी आराम मिलेगा। दूब घास के रस में घिसा हुआ सफेद चंदन और मिसरी मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से स्त्रियों का रक्त प्रदर रोग नष्ट होता है। दूब घास का रस तिल के तेल में मिलाकर शरीर पर मलने और कुछ देर रुककर नहाने से खाज-खुजली की बीमारी दूर होती है। करीब 10 ग्राम ताजी दूब घास को पीसकर एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पी लेने से शरीर में नयी ताजगी का संचार करती है। हरी दूब कोमल व ताजी ही लेनी चाहिए। हरी दूब हमेशा अच्छी मिट्टी वाली जगह से लेनी चाहिए। जड़ की ओर से हरी दूब को काटकर साफ पानी से धोने के बाद ही सेवन करना चाहिए।
प्रोटीन के फायदे तथा कितना खाएँ
प्रोटीन हमारे लिए बहुत आवश्यक है, इसे मांसपेशियों का भोजन कहा जाता है, लेकिन जब मांसपेशियों को आवश्यकता से अधिक भोजन खिलाया जाता है तो उसका प्रभाव बाहरी रूप से ही दिखाई नहीं देता, बल्कि शरीर के आंतरिक अंगों की कार्यप्रणाली भी गड़बड़ा जाती है। हमारी आवश्यकता की कुल कैलोरी में से 20 से 35 प्रतिशत प्रोटीन से आना चाहिए। हालाँकि प्रतिदिन कितनी मात्रा में प्रोटीन का सेवन किया जाए, यह उम्र, वजन और आपके वर्क आउट रुटीन पर निर्भर करता है। बिना सोचे-समझे अधिक मात्रा में प्रोटीन का सेवन आपको फायदे की बजाय नुकसान पहुँचा सकता है। प्राकृतिक तौर पर आप प्रोटीन शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों ही तरह के भोजन से ले सकते है जैसे दूध प्रोडक्ट्स, सोयाबीन अंकुरित दालें, मछली, चिकन आदि से लेकिन जिन लोगो में प्रोटीन की कमी खाने से पूरी नहीं हो रही हो तो ऐसे लोगो को डॉक्टर अक्सर प्रोटीन सप्लीमेंट पाउडर लेने की सलाह देते है। प्रोटीन पाउडर दूध, छाछ, कैसिइन और सोया से बना एक सूखा पाउडर होता है. आजकल तो मटर से भी प्रोटीन बनाया जा रहा है। प्रोटीन को हमारे शरीर के लिए सबसे जरूरी मैक्रोन्युट्रिएंट्स में से एक माना जाता है। मैक्रोन्युट्रिएंट्स उसे कहते हैं, जिनकी हमारे शरीर को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। मानव शरीर में 16 प्रतिशत प्रोटीन होता हैं। प्रोटीन हमारे बालों, त्वचा, नाखूनों, मांसपेशियों, हड्डियों और रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। हमारे शरीर में पाए जानेवाले कई रसायनों, जिनमें हार्मोन, न्यूरोट्रांसमीटर और एंजाइम भी शामिल हैं, में भी प्रोटीन होता है। वजन कम करने में भी प्रोटीन सहायक होता है क्योंकि प्रोटीन के पाचन में अधिक समय लगता है, इसका सीधा सा मतलब है, इस प्रक्रिया में ज्यादा कैलोरी बर्न होती है। यह आपके पेट में ज्यादा समय तक बने रहते हैं, इससे पेट अधिक समय तक भरा रहेगा, आपको कम खाने और वजन कम करने में सहायता मिलती है। प्रोटीन हृदय और फेफड़ों के ऊतकों को भी स्वस्थ रखता है। ऊतकों और मांसपेशियों के स्वास्थ्य के अलावा हड्डियों, लिगामेंट्स, टेंडन और दूसरे संयोजी ऊतकों को स्वस्थ रखने के लिए भी हमें प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन की कमी से हड्डियाँ और ऊतक कमजोर, कड़े और आसानी से टूटनेवाले हो जाते हैं। प्रोटीन महिलाओं के लिए एक बहुत ही आवश्यक पोषक तत्त्व है। मोनोपॉज के बाद जिन महिलाओं के भोजन में प्रोटीन की मात्रा कम होती है, उनमें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। प्रोटीन शरीर के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए जरूरी है, यह हमें ऊर्जा देता है, इम्यून तंत्र को शक्तिशाली बनाता है, शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालता है और शरीर का पीएच लेवल बनाए रखता है। प्रोटीन ऊर्जा का ऐसा स्त्रोत है, जिसे तोड़ना शरीर के लिए मुश्किल है। ऊर्जा के दूसरे स्त्रोत जैसे कार्बोहाइड्रेट जल्दी और आसानी से टूट जाते हैं। प्रोटीन शरीर में ऊर्जा के स्तर को एक समान बनाए रखता है और पूरा दिन भूख को नियंत्रित रखता है। प्रोटीन मूड भी ठीक रखता है और तनाव के स्तर को कम करता है। बालों और त्वचा को बनाए स्वस्थ और चमकदार दूसरे अंगों और हड्डियों की तरह त्वचा, बाल और नाखून भी प्रोटीन के बने होते हैं। प्रोटीन का कम मात्रा में सेवन करने से त्वचा की स्वयं की मरम्मत करने की क्षमता कम हो जाती है। बिना प्रोटीन के त्वचा झुर्रियों वाली, ढीली हो जाती है। यह त्वचा को युवा, स्वस्थ और मजबूत बनाता है। बालों और नाखूनों में केराटिन नामक प्रोटीन होता है। बालों, त्वचा और नाखूनों को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने के लिए प्रोटीन से भरपूर भोजन खाएँ। प्रोटीन तुरंत एनर्जी देता है और आपकी मसल्स को टूटने से बचाता है। प्रोटीन की आवश्यकता आपके भार और आपके कैलोरी इनटेक पर निर्भर करती है। आपकी कुल कैलोरी का 20 से 35 प्रतिशत प्रोटीन से आना चाहिए। अगर आप प्रतिदिन 2,000 कैलोरी का सेवन करते हैं तो उसमें से 600 कैलोरी प्रोटीन से आना चाहिए। प्रोटीन सप्लीमेंट्स खरीदते वक्त ध्यान रहे कि वोही पैकेट लें जिसमें प्रोटीन मुख्य रूप से हो। इसके लिए लेबल को ध्यान से पढ़ें। कई प्रोटीन सप्लीमेंट्स में हाई कैलोरीज और कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं। इसीलिए, चुनाव अपने वजन और जरूरत के हिसाब से करें।
मजबूत हड्डियों के लिए खाएं ये फल और सब्जियां
मजबूत हड्डियों के लिए जरुरी है विटामिन ‘के’ः सेम और अन्य फलीदार सब्जियों (बींस) में भरपूर फाइबर होते हैं। इसके अलावा एंटी ऑक्सीडेंट, प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, कैल्शियम भी बींस में पाए जाते हैं। हरी और पीली बींस में विटामिन ‘के’ होता है, जो हड्डियों और उनके जोड़ों को स्वस्थ रखता है। बींस को कुछ घंटे तक पानी में भिगोकर इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से फाइटेट्स का असर काफी कम हो जाता है। हड्डियों के दोस्त विटामिन ‘के’ का भंडार है शतावरी यानी एस्परगस ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डियों की अन्य बीमारियों में बेहद कारगर है।
हड्डी के रोगों में बहुत कारगर है चेरी: चेरी कुदरत के सबसे ताकतवर एंटी इन्फ्लेमेटरी (सूजन, शोथ के खिलाफ काम करने वाले) सिपाही हैं। इसीलिए ये आर्थराइटिस रोग में बहुत मददगार हैं। ये शरीर में मौजूद वसा के खिलाफ भी लड़ते हैं। इसलिए मजबूत हड्डियों के लिए इसे अपने खाने में जरुर शामिल करें।
हड्डियों को मजबूत करती है ग्रीन टी: ग्रीन टी में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट विटामिन सी और विटामिन ई से भी बहुत ज्यादा बेहतर पाए गए हैं। पाया गया है कि ग्रीन टी हड्डियों को मजबूत करती है और आर्थराइटिस का खतरा कम करती है।
हड्डियों के दोस्त विटामिन डी का भंडार हैं मशरूम: मशरूम में विटामिन डी का भंडार होता है, इसलिए ये हड्डियों और ऑस्टियोपोरोसिस जैसे रोगों के लिए बहुत फायदेमंद हैं। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले माने जाते हैं, क्योंकि ये एंटी वायरल और अन्य प्रोटीन का निर्माण करते हैं। कैल्शियम को अपने अंदर आत्मसात करने के लिए हड्डियों को विटामिन डी की जरूरत पड़ती है। विटामिन डी का मुख्य काम ही हड्डियों में कैल्शियम को अवशोषित करना और कैल्शियम को बाहर निकालने का है। इसलिए मजबूत हड्डियों के लिए विटामिन डी की भी बहुत जरूरत होती है।
आर्थराइटिस को दूर रखते हैं नट्स: ऊर्जा, प्रोटीन, एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन डी, मिनरल्स, कैल्शियम और के एक उपहार की तरह हैं। ये आर्थराइटिस को दूर रखने में भी बहुत लाभदायक हैं। नट्स जैसे बादाम, अखरोट, काजू आदि इसलिए मजबूत हड्डियों के लिए इन्हें अपने खाने में जरुर शामिल करें।
जोड़ों के रोग में बहुत काम का है जैतून का तेल: जैतून के तेल के सौ से भी ज्यादा फायदे हैं। कई अध्ययनों में जैतून का तेल रुमेटॉयड आर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसे हड्डी और जोड़ों के रोगों में बड़े काम का पाया गया है। यह मोटापा भी नहीं बढने देता है जिससे हड्डियों पर कम दबाव रहता है।
संतरा: संतरे में विटामिन सी, ए, एंटी ऑक्सीडेंट जैसे तत्व होते हैं। संतरे में करीब 170 फोटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं। फ्लेवोनॉयड की संख्या करीब 60 होती है। इस वजह से यह शरीर में सूजन, जलन, अल्सर, गांठ और कोशिकाओं के क्षय के दुश्मनों के खिलाफ शानदार ढंग से काम करता है यानी जबरदस्त रोग प्रतिरोधक।
ब्राउन राइस: भूरे चावल सफेद चावल का अपरिष्कृत (अनरिफाइंड) रूप होते हैं। इनमें प्रोटीन, थिएमाइन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम, पोटेशियम और फाइबर पाए जाते हैं। ब्राउन राइस में मौजूद सेलेनियम तत्व कई बीमारियों समेत हड्डियों की समस्या भी कम करता है।
पालक और हरी पत्तेदार सब्जियां है बहुत दमदार: पालक और हरी पत्तेदार सब्जियां कैल्शियम पाने का अच्छा जरिया होती हैं। पालक में मौजूद विटामिन सी, ई, बीटा कैरोटीन, सेलेनियम, जिंक, मैगनीज आदि इसके एंटी ऑक्सीडेंट गुणों को और बढ़ा देते हैं। विटामिन ‘के’ होने से हड्डियों की मजबूती में भी पालक योगदान देता है। थोड़ी सावधानी: चूंकि पालक में ऑक्सलेट भी होता है, जो पथरी का खतरा पैदा करता है, इसलिए नियंत्रित मात्रा में ही पालक का सेवन करना चाहिए।
रोग का खतरा कम करता है नाशपाती का बोरॉन: नाशपाती में फाइबर, विटामिन बी, सी, ई, कॉपर और पोटेशियम का भंडार होता है, जिससे यह सेहत के लिए लाभकारी है। नाशपाती में बोरॉन का उच्च स्तर होता है, जिससे यह कैल्शियम को बनाए रखने और ऑस्टियोपोरोसिस जैसे हड्डी रोग के खतरे को कम करने में मददगार है।
हड्डी टूटने से बचाता है गेहूं का अंकुर (व्हीट जर्म): इसे पोषक तत्वों की खान भी कहा जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फोलिक एसिड, फाइबर, विटामिन और मिनरल की भरमार होती है। यह फोलिक एसिड का सर्वश्रेष्ठ भंडार माना जाता है। फोलिक एसिड हड्डी टूटने जैसी समस्याओं का खतरा टालने का काम करता है। मजबूत हड्डियों के लिए इसे अपने खाने में शामिल करें।
हड्डी को पूरा पोषण देते हैं कद्दू, सूरजमुखी के बीज: मजबूत हड्डियों को सिर्फ कैल्शियम ही नहीं चाहिए होता है, उन्हें अन्य पोषक तत्वों की भी जरूरत होती है। कद्दू और सूरजमुखी के बीज में भरपूर मैग्नीशियम होती है। इसके साथ ही इनमें विटामिन ई, बी-1, आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस भी होता है। मजबूत हड्डियों के लिए यह सब भी चाहिए, इसलिए इन बीजों का सेवन भी कीजिए।
धूप भी बहुत जरूरी है: धूप में चूंकि विटामिन डी भरपूर होता है और विटामिन डी हड्डियों के लिए जरूरी होता है, इसलिए हमें मजबूत हड्डियों के लिए सुबह के वक्त नियमित रूप से धूप सेंकनी चाहिए।
विटामिन डी का घर अंडा भी हड्डी का मित्र है: अंडा विटामिन डी पाने का बहुत अच्छा जरिया है, इसलिए अंडा खा सकने वालों को मजबूत हड्डियों के लिए अंडे का भी सेवन जरूर करना चाहिए।
हड्डियों की कई समस्याओं से बचाता है सोया फूड: सोयाबीन और उसके उत्पाद (सोया मिल्क, सोया बडी, सोया पनीर, टोफू आदि) भी हड्डियों के लिए बहुत काम के हैं। इनमें भरपूर कैल्शियम तो है ही, कुछ अध्ययनों में सोया फूड में आइसोफ्लेवोंस नाम का पदार्थ पाया गया है, जो हड्डियों को कई रोगों से बचाता है। खासकर महिलाओं में मीनोपॉज के बाद होने वाली हड्डियों की समस्या में यह बहुत काम का है।
हड्डियों तक कैल्शियम पहुंचाने में मदद करता है नींबू: नींबू के रस में विटामिन सी भरपूर होता है, जो कैल्शियम को आत्मसात (एब्जॉब) करने में शरीर की मदद करता है और हड्डी की बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस से लड़ता है। गर्भवती महिला यदि एक गिलास गुनगुना पानी दो चम्मच कच्चे नींबू का रस डालकर पीती है तो यह गर्भ में पल रहे बच्चे की हड्डियों को मजबूत बनाता है।
हड्डी के दर्द में राहत देता है पपीते का विशेष एंजाइम: पपीते में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस के अलावा विटामिन सी, बी और बीटा कैरोटीन तथा फाइबर होते हैं। पपीते में एक विशेष एंजाइम पाया गया है, जो सूजन के खिलाफ काम करता है। इसी कारण आर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी स्थितियों में होने वाले दर्द से पपीते का सेवन राहत देता है। यह हड्डी की समस्याओं में भी लाभ पहुंचाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम करता है अनानास: अनानास विटामिन सी, मैगनीज जैसे मिनरल्स और फाइबर से भरपूर है। यह मजबूत हड्डियों के लिए एकदम सही फल है साथ ही यह हड्डियों के रोगों का खतरा कम करता है। इसमें सूजन का विरोधी एक विशेष एंजाइम ब्रोमेलिन पाया जाता है। जिन लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या पाई गई है, उनमें मैगनीज की खास तौर से कमी पाई गई है। अनानास मैगनीज का बहुत अच्छा जरिया है, इसलिए इसका सेवन ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को को कम करता है।
हड्डियों को बीमार नहीं पड़ने देता अनार: अनार में भरपूर फाइटोकेमिकल्स, फ्लेवेनॉयड और पॉलीफिनोल (एंटी आक्सीडेंट) होते हैं। हड्डी के रोग ऑस्टियोपोरोसिस में भी अनार बहुत काम का पाया गया है। खासकर अनार के बीज का तेल (पॉमग्रेनेट सीड ऑयल या पीएसओ)। इस तेल में प्यूनिसिक नाम का एक एसिड पाया गया है, जो सूजन विरोधी और एंटी ऑक्सीडेंट के गुण रखता है। मजबूत हड्डियों के लिए अनार को भी अपने आहार में शामिल करें। एक अध्ययन के अनुसार, प्यूनिसिक एसिड हड्डियों में मौजूद खनिजों की सघनता को बढ़ाता है और ऑस्टियोपोरोसिस में बहुत फायदा पहुंचाता है। अनार के जूस में मौजूद तत्व सीरोटोनिन और एस्ट्रोजन को उत्तेजित करके बोन मास में सुधार करते हैं।
हड्डियों के मित्र लाइकोपेन का दूसरा भंडार है तरबूज: लाइकोपेन नाम का तत्व, जो कि चमकीले लाल रंग का कैरोटिनॉयड होता है, मजबूत हड्डियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है यह हड्डियों को क्षतिग्रस्त होने से रोकता है। इसलिए मजबूत हड्डियों के लिए तरबूज का सेवन भी अवश्य करें द्य
मजबूत हड्डियों के लिए कैल्शियम का क्षय रोकना जरूरी: वैज्ञानिकों ने पाया है कि हड्डियों के लिए शरीर को कैल्शियम या अन्य जरूरी मिनरल देने से ही काम नहीं चलता, बल्कि हड्डियों में कैल्शियम की क्षति को रोकना भी जरूरी होता है। खान-पान, जीवनशैली और जेनेटिक कारणों से हमारी हड्डियों से कैल्शियम का नुकसान होता रहता है। परीक्षणों में पता चला है कि दूध और उनके उत्पादों से हड्डियों को कैल्शियम मिलता तो है, पर इन उत्पादों में एनीमल प्रोटीन भी होती है, जो शरीर में हजम होते समय एसीडिटक बाय प्रॉडक्ट बनाती है। डेयरी उत्पादों से कैल्शियम मिलता तो है, पर हड्डियों से कैल्शियम छिनता भी है। इसीलिए जिन देशों में लोग डेयरी उत्पादों का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं, वहां ऑस्टियोपोरोसिस की बीमारी कम पाई गई है। कहने का अर्थ यह है कि दूध हड्डियों को कैल्शियम तो देता है, मगर हड्डियों का क्षय होने से नहीं रोक पाता। यह काम लाइकोपेन जैसे विशेष पदार्थ ही करते हैं या फिर विटामिन डी करता है जो कैल्शियम को हड्डियों में भेजने का काम करता है। इसीलिए इन प्रयोगों से जुड़े वैज्ञानिकों की सलाह है कि यदि हम कैल्शियम एनीमल प्रोटीन (दूध, मांस, अंडा) के बजाय दूसरे पदार्थों से लें तो हड्डियों का क्षय ज्यादा बेहतर तरीके से रोक सकते हैं।
बीमारी में बहुत लाभ देता है लहसुन और इसका तेल: लहसुन और उसके तेल को भी हड्डियों का क्षय रोकने में बहुत सक्षम पाया गया है। कई परीक्षणों में पता चला है कि कैल्शियम और विटामिन डी के साथ यदि शरीर को लहसुन का तेल भी मिल जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस के मरीज को बहुत लाभ होता है। लहसुन में एक प्लांट एस्ट्रोजन हार्मोन होता है, जो शरीर में कैल्शियम का अवशोषम (एब्जॉब्र्शन) बढ़ा देता है। मजबूत हड्डियों के लिए लहसुन के गुण हम गठिया रोग में क्या खाएं पोस्ट में पहले ही बता चुके है।
आलू बुखारा लेता है स्वस्थ हड्डियों की जिम्मेदारी: कुछ अध्ययनों में इस फल को भी ऑस्टियोपोरोसिस में लाभकारी पाया गया है। खासकर सूखे आलूबुखारा में वे खास मिनरल पाए गए हैं, जो हड्डियों के मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण होते हैं। ये हैं बोरोन और सेलेनियम। ये दोनों बोन मिनरल डेसिटी का संतुलन बनाए रखने का काम करते हैं।
मांसाहारियों में हड्डियों का क्षरण ज्यादा: मांस के जरिए कैल्शियम तो मिलता है, पर ज्यादा प्रोटीन भी शरीर में जाता है। यह प्रोटीन ज्यादा अम्ल बनाता है, जिसे निष्क्रिय करने के लिए शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचता है। इसलिए बढती उम्र के साथ साथ मांसाहारी भोजन छोड़ देना चाहिए या कम कर देना चाहिए।
हड्डी के रोगों की रफ्तार धीमा करती है बेरी: स्ट्रॉबेरी समेत सभी बेरियां विटामिन सी की भंडार होती हैं। इनमें काफी कैल्शियम भी होता है। इनमें पोटेशियम और मैगनीज जैसे तत्व भी हैं। ये सभी चीजें मिलकर ऑस्टियोपोरोसिस की रफ्तार को धीमा करती हैं। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि यह फल रक्त में सी-रिएक्टिव प्रोटीन को कम करता है, जिससे शरीर के अंदर किसी भी तरह की सूजन का विरोध होता है। इससे आर्थराइटिस जैसे हड्डी के रोग में राहत मिलती है। इसलिए मजबूत हड्डियों के लिए बेरी को अपने खाने में जरुर शामिल करें।
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Tree TakeJun 19, 2023 09:51 PM
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