A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

पक्षियों का रोचक व मनमोहक रूस्टिंग व्यवहार

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

पक्षियों का रोचक व मनमोहक रूस्टिंग व्यवहार

किसी भी बसेरा स्थान पर पक्षियों की संख्या गैर-प्रजनन समय के दौरान अधिक होती हैं, जबकि छोटे बसेरे प्रजनन काल में भी बने रहते हैं...

पक्षियों का रोचक व मनमोहक रूस्टिंग व्यवहार

Talking POint
डॉ.अखिलेश कुमार व् डॉ.सोनिका कुशवाहा
भारतीय जैवविविधता संरक्षण संस्थान, झाँसी-उत्तर प्रदेश, भारत
जब पक्षियों के विषय में बात की जाती है, तो सामान्यतः उनके भोजन और घोंसले बनाने के व्यवहार का निरीक्षण और अध्ययन किया जाता है। पक्षियों के आश्रयस्थल या रूस्टिंग स्थानों के महत्वपूर्ण विषय को आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ‘रूस्ट‘ शब्द जर्मन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘‘मुर्गों का शयन गृह”। रूस्टिंग को हिंदी में बसेरा अथवा आश्रयस्थल कह सकते है। परिभाषा के अनुसार बसेरा वह स्थान है जहाँ  पक्षी या चमगादड़, आराम करते हैं। सरल शब्दों में बसेरा करना पक्षियों में असक्रियता या आराम की अवधि है जिसकी मनुष्यों की नींद से समानता की जा सकती है । किसी भी बसेरा स्थान पर पक्षियों की संख्या गैर-प्रजनन समय के दौरान अधिक होती हैं, जबकि छोटे बसेरे प्रजनन काल में भी बने रहते हैं। बसेरा बनाने के लिए पक्षियों द्वारा चुनी गई जगहें मुख्यता सूखे एवम हर दृस्टि से उनके लिए सुरक्षित होती हैं । रूस्टिंग स्थान अस्थायी अथवा स्थायी हो सकते है तथा पक्षी अकेले या झुण्ड में रूस्ट या बसेरा कर सकते हैं। सामुदायिक रूस्टिंग में पक्षियों के झुंड सामान्यतः पेड़ों पर एक साथ बसेरा करते हैं, जिनमें इनकी संख्या कभी कभी हजारो में भी हो सकती हैं। अन्य देशों से गैर-प्रजनन पक्षी प्रजातियों के आगमन के कारण सर्दियों के दौरान बसेरा करते हुए पक्षीयो के अधिक  और बड़े झुण्ड देखने को मिलते हैं। 
कुछ स्थितियों में सामुदायिक आश्रय वाले पेड़ घने जंगलो और कभी गांव व् शहर की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भी स्थित हो सकते हैं, जहां आसानी से दिख जाने वाले आम पक्षी जैसे मैना, तोता, कौआ, गौरैया, कबूतर आदि बड़ी संख्या में बसेरा करते हुए देखे जा सकते है। कभी-कभी मौसम के बदलाव के साथ-साथ पक्षियों के आश्रय करने का स्थान भी बदलते हुए देखा जा सकता है। जिसका मुख्य कारण भोजन और पानी की उपलब्धता भी हो सकती है। पक्षी अपने उचित भोजन और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपने बसेरा क्षेत्रों का चुनाव करते हैं। ऐसे बसेरा क्षेत्र ऊँचे एवं विशाल वृक्ष, चट्टाने, ऊंची इमारते या ऊंचे टावर भी हो सकते है जहां से बैठ कर  पक्षी नीचे अपने भोजन को आसानी से देख सकते हैं और बड़े शिकारी पक्षियों से खुद को सुरक्षित भी रख सकते हैं। विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा स्थान और रूस्टिंग पैटर्न अलग-अलग होता है। जैसे की कठफोड़वाओं या उल्लुओ के छोटे समूह पेड़ों के कोटरो में एक साथ रात बिताते हैं। कुछ गिद्ध चट्टानों पर तो कुछ बड़े पेड़ों पर बसेरा करते हैंय जबकि कई समुद्री पक्षी द्वीपों पर बसेरा करते हैं, अबाबील तथा पत्रिंगा (ग्रीन बी-ईटर) टेलीफोन एवम बिजली के तारो पर बसेरा कर सकते हैं। गौरैया जैसे छोटे पक्षी रात्रि निवास के लिए कांटेदार और झाड़ीदार वनस्पतियों को पसंद करते हैं जहां पर वे खुद को अन्य परभक्षियो से सुरक्षित पाते है। कोयल अकेले, बुलबुल छोटे समूहों, जबकि मैना बहुत बड़ी संख्या के झुण्ड में बसेरा करती हैं। 
सभी पक्षियों को विश्राम की आवश्यकता होती है जो पक्षी दिन के समय सक्रिय रहते हैं, वे रात्रि में विश्राम करते है और कुछ रात्रिचर पक्षी जैसे उल्लू जो भोजन आदि के लिए रात में घूमते हैं, वो दिन के समय बसेरा करते हैं। मैना विभिन्न प्रकार के बसेरा स्थानों का चयन करती है जो की कई प्रकार के वृक्ष, झाडिया, बिजली या मोबाइल टावर तथा  कई  प्रकार की इमारतें व् पानी की टंकिया भी हो सकती हैं। पक्षियों की कुछ प्रजातियाँ आमतौर पर किसी बसेरा स्थल के प्रति विशेष व् गहरा  लगाव रखती हैं और कभी-कभी दशकों और सदियों तक एक ही स्थान पर बसेरा करती है। कुछ प्रजातियाँ दृष्टिकोण चरणों में आश्रयस्थल स्थापित करती है जैसे की भोजन के मैदानों पर एकत्रीकरण करने के साथ-साथ समूह में उड़ान लेना, फिर तत्काल बसेरा सथल के आसपास संयोजन और अंत में बसेरा में प्रवेश करना। इस प्रकार का  रूस्टिंग व्यवहार  मैना की विभिन्न प्रजातियों में देखा जा सकता है।कुछ पक्षी सामुदायिक विश्राम करते हैं जैसे की मैना, कौआ और तोते एक साथ बसेरा करते हुए देखे जा सकते हैं । सामुदायिक आश्रय तीन लाभ प्रदान करता है। (1) सभी पक्षी एक ही बसेरे को जब साझा करते है तो एक दूसरे से सर्दियों में गर्माहट भी प्राप्त करते है । (2) हमेशा झुण्ड के कुछ सदस्य दूसरों की तुलना में अधिक सतर्क होते हैं। इस प्रकार वे ंसंतउ के रूप में सभी के लिए रक्षक का कार्य करते हैं व् किसी भी विषम परिस्थिति से सभी को सचेत कर देते है । (3) सांप्रदायिक आश्रय भोजन के स्रोत के संबंध में आधार सूचना के प्रसारण की अनुमति देता है । इस प्रकार विश्राम स्थल को एक केंद्र माना जा सकता है जहा किसी विशेष पक्षी द्वारा लाई गई जानकारी को दूसरे पक्षियों तक पहुंचाया जाता है।
आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र, जलपक्षियों के बसेरा स्थल के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पनकौवा, बगुले, जांघिल और घोंघिल की बड़ी बड़ी प्रजनन कालोनियाँ और बसेरा स्थल आर्द्रभूमि में व् उसके पास देखे जा सकते है । पुराने सूखे पेड़ जो मनुष्यों के लिए अनुपयोगी प्रतीत हो सकते हैं, वास्तव में पक्षियों, विशेषकर शिकारी पक्षियों (रैप्टर्स) के लिए महत्वपूर्ण आश्रय स्थल हैं। अनेक पेड़ और झाड़ियाँ विकास के नाम पर साफ कर दी जा रही है। निरंतर पेड़ों और झाड़ियों की कटाई और छंटाई से उचित आश्रय स्थान की उपलब्धता कम हो गई है। सुरक्षित बसेरा स्थलों की अनुपलब्धता के कारण पक्षियों के लिए कोई विकल्प नहीं बचता है और वे असुरक्षित बिजली टावरों और तारों पर बसेरा करना शुरू कर देते हैं। इसी तरह मोबाइल टावरों पर विश्राम करने से पक्षी हानिकारक तरंगो के संपर्क में आते हैं। दिन प्रतिदिन होने वाले विकास से क्षति के अलावा, बसेरा स्थलों को शिकारियों के खतरों का सामना करना पड़ता है। शिकारियों द्वारा बसेरा स्थान से बड़ी संख्या में पक्षियों को शिकार किया जाता है।
दुर्भाग्य वश पक्षियों की गतिविधियाँ का कभी-कभी मानवीय हितों से सामना होता हैं रंपेम कुछ पक्षी कृषि फसलों को क्षति पहुंचाते हैं, तो कुछ पक्षियों से मनुष्य को जैसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आ जाती हैं । बड़ी संख्या में पक्षियों के बसेरा स्थान पर सब से ज्यादा समस्या लोगो को बीट से होने वाली गंदगी से है । कबूतर जब बहुत अधिक संख्या में बसेरा करते है तो  उस जगह अस्वच्छ स्थिति पैदा हो जाती है जिस के कारण लोग पक्षियों को भागने के लिए पेड़ो को ही काट देते है व् डराने के लिए उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं ताकि वे अपने निवास स्थान पर वापस न लौटें। क्योंकि अधिकांश लोग अपनी निजी संपत्तियों में स्थित पेड़ों पर पक्षियों को बसेरा करने की अनुमति नहीं देते, पक्षी पूरी तरह से सार्वजनिक स्थानों पर निर्भर हैं। अधिकारियों व्  पक्षी  संरक्षणकारियों को  सार्वजनिक स्थानों पर सामुदायिक निवास वाले पेड़ों को बचाने के लिए ज्यादा ध्यान देना होगा जिन पर पक्षी सामुदायिक बसेरा करते है नहीं तो इन् पक्षियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। सड़कों का चैड़ीकरण व् राजमार्गों के विस्तार के लिए कई वर्त्तमान बेसरा स्थलों (वृक्षों) के लिए खतरा है। ऐसी स्थिति  से  बचने  के  लिए  तीव्र  गति  से  बढ़ने वाले नए वृक्षों का  रोपण  करना  चाहिए एवं  कुछ  महत्वपूर्ण स्थलों पर कृत्रिम विश्राम स्थलों का भी निर्माण किया जाना चाहिए। कई संकटग्रस्त पक्षियों के आश्रयस्थल के रूप में वृक्षों, रेलवे स्टेशनों व् बस अड्डों को चिन्हित कर के उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है। पक्षियों के बसेरा स्थान का प्रबंधन व् मनुष्य से ऐसे संघर्षों को कम करना वन्यजीव प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। पक्षियों के सफल संरक्षण के लिए प्रजनन के साथ-साथ उनके बसेरा क्षेत्र व् व्यवहार को भी समझना जरूरी है। योजनाबद्ध तरीके से हम उनके बसेरा क्षेत्रों की रक्षा करके उनके प्राकृतिक आवास का संरक्षण कर सकते हैं। इसके  लिए लोगो  को पक्षियों के साथ सद्भाव से रहने के लिए जागरूक और संवेदनशील होने का सन्देश दिया जाना चाहिए।

                           

                           

Leave a comment