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17 हजार 348 लीटर पानी स्टोरेज कर लेता है बाओबाब का पेड़

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17 हजार 348 लीटर पानी स्टोरेज कर लेता है बाओबाब का पेड़

बाओबाब वृक्ष की सबसे पहली पहचान है इसका उल्टा दिखना इसका मतलब इसको देखने पर आभास होता है कि मानों पेड़ की जड़े ऊपर और तना नीचे हो...

17 हजार 348 लीटर पानी स्टोरेज कर लेता है बाओबाब का पेड़

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दुनिया में विचित्र किस्म के सैंकड़ों पेड़ या वृक्ष हैं। जैसे कोई इतना ऊंचा है कि जिसे देखने के लिए आपको उसकी ऊंचाई जितनी दूरी पर ही खड़ा होना होगा और कुछ पेड़ तो इतने विशाल हैं कि उन्हें हेलिकॉप्टर से ही देखा जा सकता है। कुछ पेड़ों की विचित्र आकृतियों को देखकर लगा है कि क्या ये पेड़ हैं? दूसरी ओर कुछ ऐसे भी पेड़ हैं जो परभक्षी होते हैं मतलब जीवों को खाकर ही जिंदा रह सकते हैं। यहां जानिए उस पेड़ के बारे में जो खुद के भीतर बारिश का लगभग 17 हजार 348 लीटर पानी स्टोरेज कर लेता है। इस पेड़ का नाम है बाओबाब। बाओबाब के पेड़ पूरे अफ्रीका में फैले हुए हैं। वे मेडागास्कर, भारत, सीलोन और ऑस्ट्रेलिया में भी उगते हैं। वे जिम्बाब्वे के कई इलाकों में उगते हैं। उत्तरी प्रांत में वे लिम्पोपो और जाउटपैन्सबर्ग रेंज के बीच पाए जाते हैं। मेसिना वास्तव में एक बाओबाब शहर है। लुइस ट्रिचर्ड और मेसिना के बीच एक प्रसिद्ध ‘आधे रास्ते का बाओबाब‘ है, एक जलाशय जिससे कई लोग पानी निकालते हैं। बाओबाब को गर्म, रेतीले मैदान पसंद हैं। बाओबाब के अन्य आम नामों में बोआब, बोआबोआ, बोतल वृक्ष तथ उल्टा पेड़ आदि नाम शामिल हैं। अरबी में इसे ‘बु-हिबाब‘ कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘कई बीजों वाला पेड़‘। अफ्रीका ने इसे ‘द वर्ल्ड ट्री‘ की उपाधि भी प्रदान की है और इसे एक संरक्षित वृक्ष भी घोषित किया है। बाओबाब वृक्ष बहुत ही मजबूत वृक्ष होता है। इसे हिन्दी में गोरक्षी कहते हैं। 30 मीटर ऊंचे और लगभग 11 मीटर चैड़े इस वृक्ष को देखना बहुत ही अद्भुत है। बाओबाब वृक्ष की सबसे पहली पहचान है इसका उल्टा दिखना इसका मतलब इसको देखने पर आभास होता है कि मानों पेड़ की जड़े ऊपर और तना नीचे हो। इस पेड़ पर साल के 6 माह पत्ते लगे रहते हैं और बाकी 6 माह यह पेड़ एक ठूंठ की भांति दिखाई देता है। बताया जाता है कि मेडागास्कर में स्थित कुछ बाओबाब वृक्ष बहुत ही पुराने हैं। यह वृक्ष रोमन समय से ही यहां खड़े हैं। ऐसा ही एक वृक्ष इफेती शहर के पास स्थित है। इस पेड़ का नाम टी-पॉट बाओबाब है। इसके मुख्य तने से एक तना और निकला है, इसी कारण इसका नाम टी-पॉट पड़ा। इसे 1200 साल पुराना बताया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें एक लाख 17 हजार 348 लीटर पानी स्टोरेज करने की क्षमता है। इस प्रजाति के कुछ और पेड़ यहां हैं, जिनकी लंबाई 80 मीटर और तने की चैड़ाई 25 मीटर तक है। आमतौर पर बाओबाब वृक्ष के तने में हजारों लीटर शुद्ध पानी भरा रहता है जो पीने योग्य होता है। यह पानी वर्षा के अभाव में पीने के लिए ही काम में लिया जाता है। कहते हैं कि यदि कोई उसे किसी भी प्रकार से नुकसान ना पहुंचाए तो बाओबाब का वृक्ष लगभग 6 हजार वर्षों तक जिंदा रह सकता है। बाओबाब के वृक्ष पर उसकी आयु के 20वें वर्ष में अप्रैल से मई के बीच रात्रि में फूल खिलते हैं।  फूलों का रंग सफेद तथा आकार बड़ा होता हैं।
इंसानों से 25 लाख गुना ज्यादा चींटियां, दुनिया के लिए क्यों हैं जरूरी?
20,000,000,000,000,000!  सिर चकराने वाला ये नंबर धरती पर चींटियों की संख्या का है। गणित की भाषा में कहें, तो ये संख्या 20 क्वाड्रिलियन या 20 करोड़ शंख या 20 लाख करोड़ अरब है। यानी 20 के आगे 15 जीरो। चींटियों की आबादी धरती पर इंसानों की आबादी से 25 लाख गुना ज्यादा है। ये खुलासा हाल ही में आई एक स्टडी में हुआ है। पहली बार किसी रिसर्च में चींटियों की आबादी की जानकारी मिली है।ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और हांगकांग के रिसर्चर्स की एक टीम ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की 489 स्टडीज के आधार पर चीटियों की आबादी पता की है। ये स्टडी प्रोसेडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में छपी है। इसमें अंग्रेजी के साथ फ्रेंच, रशियन और चीनी भाषा मंडारिन में हुई स्टडीज का भी एनालिसिस किया गया। इसके लिए रिसर्चर्स ने दुनिया के सभी महाद्वीपों में जमीन और पेड़ पर रहने वाली अलग-अलग चींटियों के डेटा कलेक्ट करने की कोशिश की। इसके बाद भी वे हर जगह का डेटा कलेक्ट नहीं कर पाए। रिसर्चर्स का कहना है कि अफ्रीका इसका उदाहरण है, जहां बहुत चींटियां पाई जाती हैं, लेकिन उनकी काफी कम स्टडी हुई है। चींटियों की संख्या से जुड़ा ये नया आंकड़ा पुराने अनुमानों से 2 से 20 गुना ज्यादा है। इससे पहले माना जाता था कि कीटों की कुल संख्या का तकरीबन 1ः चींटियां हैं। इस बार की स्टडी में केवल चींटियों की संख्या को आधार बनाया गया।  स्टडी में शामिल रिसर्चर्स ने हमारे इकोसिस्टम में चींटियों के योगदान की वजह से उन्हें इकोलॉजिकल इंजीनियर्स कहा है।  रिसर्च में पाया गया कि इंसानों का कुल बायोमास 6 करोड़ टन है। जबकि चींटियों का कुल बायोमास 1.2 करोड़ टन है। यानी चींटियों का वजन इंसानों के वजन के पांचवें भाग या करीब 20ः के बराबर है। जबकि दुनिया के सभी जंगली स्तनधारियों का वजन 70 लाख टन और पक्षियों का वजन 20 लाख टन है। बायोमास का मतलब होता है किसी खास एरिया में किसी जीव का कुल वजन या उसकी कुल मात्रा। बायोमास को आमतौर पर ड्राई वेट के रूप में मापा जाता है, क्योंकि वेट मास के रूप मापने पर शरीर में मौजूद पानी से वेट बदल जाता है। ड्राई वेट को मापने की यूनिट है टन कार्बन। स्टडी में शामिल एक रिसर्चर सबाइन नूटेन ने कहा, ‘मैं हैरान थी कि चींटियों का वजन जंगली स्तनधारियों और पक्षियों को मिलाकर भी उससे ज्यादा था।‘ चींटियों की संख्या से जुड़ा ये नया आंकड़ा पुराने अनुमानों से 2 से 20 गुना ज्यादा है। इससे पहले माना जाता था कि कीटों की कुल संख्या का तकरीबन 1ः चींटियां हैं। इस बार की स्टडी में केवल चींटियों की संख्या को आधार बनाया गया। स्टडी में शामिल रिसर्चर्स ने हमारे इकोसिस्टम में चींटियों के योगदान की वजह से उन्हें इकोलॉजिकल इंजीनियर्स कहा है। इस स्टडी के मुताबिक, चींटिया पोलर इलाकों को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में पाई जाती हैं। पोलर इलाकों में सालभर बर्फ जमी रहती हैं और इंसानी आबादी न के बराबर होती है। इनमें नॉर्थ और साउथ पोल और अंटार्कटिका जैसे इलाके शामिल हैं। स्टडी के अनुसार, ज्यादातर चींटिया दुनिया के सबसे गर्म और सबसे नम हिस्सों में रहती हैं। जंगल और सूखे इलाकों में शहरों की तुलना में ज्यादा चींटियां रहती हैं। वहीं धरती के ट्रॉपिकल जोन में चींटियों की आबादी सबसे घनी थी। धरती के मध्य में पाए जाने वाले इलाके ट्रॉपिकल जोन कहलाते हैं। यहां औसतन तापमान 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है। इस स्टडी में शामिल रहे यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के फॉरेस्ट फेलो मार्क वोंग ने कहा, ‘हमारे नतीजे दिखाते हैं कि ट्रॉपिकल इलाकों में चींटियां की संख्या सबसे ज्यादा है, इनमें वे इलाके शामिल हैं, जो इंसानी अव्यवस्था और पर्यावरण में बदलाव की वजह से सबसे ज्यादा दबाव झेल रहे हैं।’ स्टडी के मुताबिक, चींटियां प्रकृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे मिट्टी को हवा देती हैं, मिट्टी और बीजों को फैलाती हैं, आर्गेनिक मैटेरियल को तोड़ती हैं, अन्य जानवरों के लिए आवास बनाती हैं और फूड चेन का अहम हिस्सा बनती हैं। कई जीवों के साथ चींटियों का गहरा नाता है और कुछ जीव तो बिना चींटियों के जीवित ही नहीं बच पाएंगे। कुछ पक्षी अपने शिकार को बाहर निकालने के लिए चींटियों पर भरोसा करते हैं। कई चींटियां शिकारी होती हैं, जो अन्य कीड़ों की आबादी को नियंत्रण में रखने में मदद करती हैं। हजारों पौधों की प्रजातियों और चींटियों के बीच एक म्यूचुअल रिश्ता होता है, जिसमें पेड़ सुरक्षा या उनके बीजों को फैलाने के बदले चींटियों को खाना या घर उपलब्ध कराते हैं।इस स्टडी के को-राइटर जर्मनी के वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी और हांगकांग यूनिवर्सिटी के इंसेक्ट्स एक्सपर्ट पैट्रिक शुल्थिस ने कहा कि चींटिया धरती के लगभग हर इकोसिस्टम में अहम भूमिका निभाती हैं। शुल्थिस ने कहा, ‘चींटियां हर साल प्रति हेक्टेयर करीब 13000 किलो मिट्टी खिसकाती हैं। पोषक चक्र बनाए रखने में उनका बहुत प्रभाव होता है और पौधों के बीजों के डिस्ट्रिब्यूशन में भी निर्णायक भूमिका निभाती हैं।’ दरअसल इकोसिस्टम या पारिस्थितिक तंत्र उसमें शामिल सभी जीवों और भौतिक वातावरण को मिलाकर बनता है। यानी किसी खास पर्यावरण में मौजूद हर एक चीज को मिलाकर इकोसिस्टम बनता है। हार्वर्ड फोरेस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, चींटिया हमारे लिए इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि वे मिट्टी को हवा देने का जरिया हैं, जिससे पानी और ऑक्सीजन पौधों की जड़ों तक पहुंचता है। वे मिट्टी के नीचे बीजों के पौष्टिक लाइसोसोम को खा लेती हैं और बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं। यानी चींटियां बीजों से पौधों के निकलने के प्रोसेस में मददगार होती हैं। इकोलॉजिकल बैलेंस बनाए रखने के लिए चींटियां कई प्रकार के कार्बनिक मैटेरियल्स को खाती हैं, जिससे कई जीवों को भोजन मिलता है। चींटियां कीटों की श्रेणी में आती हैं। कीटों की जनसंख्या को लेकर आई पिछली कुछ स्टडीज में चिंताजनक बातें सामने आई थीं। 2021 में पब्लिश हुई कई स्टडीज में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन, बीमारियों, प्रदूषण, खेती में परिवर्तन और कीटनाशकों और जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से हर साल पृथ्वी के लगभग 1ः से 2ः कीट मर जाते हैं। अप्रैल 2020 में आई एक और स्टडी में पाया गया था कि पिछले 30 सालों में धरती पर रहने वाले एक चैथाई कीट खत्म हो गए हैं। स्टडी में शामिल पैट्रिक शुल्थिस ने कहा कि इंसान अक्सर चींटियों से चिढ़ते हैं, लेकिन ऐसे कई कारण है, जिनसे उन्हें चींटियों का शुक्रगुजार होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘उस ऑर्गेनिक मैटेरियल की मात्रा के बारे में सोचिए जो हर साल 20 करोड़ शंख चींटियां ले जाती हैं, हटाती हैं, रिसाइकिल करती हैं और खाती हैं। बायोलॉजिकल प्रोसेस के लिए चींटिया इतनी अहम हैं कि उन्हें इकोसिस्टम इंजीनियर्स कहा जाता है।’ ऐंट साइंटिस्ट रहे इओ विल्सन ने एक बार चींटियों जैसे कीटों को लेकर कहा था, ‘ये छोटी चीजें दुनिया चलाती हैं।‘
ऑस्ट्रेलियाई तट पर दुनिया का सबसे बड़ा पौधा खोजा गया
ऑस्ट्रेलिया के सबसे पश्चिमी सिरे पर शार्क बे में समुद्री घासों के बारे में खुलासा हुआ है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि पानी के नीचे फैली घास एक ही पौधा है। यह पौधा लगभग 4,500 साल पहले एक ही बीज से उगा था। इसकी खासियत ये है कि यह समुद्री घास 180 वर्ग किलोमीटर में फैला एक पौधा है। वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता शार्क बे में आम तौर पर पाई जाने वाली घास रिबन वीड प्रजाति की जेनेटिक विविधता को समझने गए थे। इस दौरान शोधकर्ताओं ने पूरी खाड़ी से नमूने जुटाए और 18,000 जेनेटिक मार्कर्स को स्टडी किया, ताकि हर नमूने का एक ‘फिंगरप्रिंट’ तैयार किया जा सके। दरअसल, वे ये जानना चाह रहे थे कि कितने पौधे मिलकर समुद्री घास का पूरा मैदान तैयार करते हैं। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन दल के नेतृत्वकर्ता जेन एडगेलो के मुताबिक, ‘शार्क बे में सिर्फ एक पौधा था। वह 180 किलोमीटर इलाके में फैला हुआ है। यह पृथ्वी पर अब तक ज्ञात सबसे बड़ा पौधा है। यह अद्भुत है, जो पूरी खाड़ी में अलग-अलग हालात में भी उगा हुआ है।’ जेन की साथी डॉ. एलिजाबेथ सिंकलेयर ने बताया कि बिना फूलों के खिले और बीजों का उत्पादन हुए भी यह पौधा बहुत मजबूत है। यह अलग-अलग तापमान और प्रकाश जैसे हालात को भी झेल रहा है, जो ज्यादातर पौधों के लिए बहुत मुश्किल होता है। शार्क बे विश्व धरोहरों में शामिल एक विशाल खाड़ी है, जहां का समुद्री जीवन वैज्ञानिकों और पर्यटकों को खासा आकर्षक लगता है। शोधकर्ता वहां कई प्रयोग कर रहे हैं ताकि जान सकें कि ऐसे सभी तरह के हालात में यह पौधा किस तरह जिंदा रहता है।

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