A First-Of-Its-Kind Magazine On Environment Which Is For Nature, Of Nature, By Us (RNI No.: UPBIL/2016/66220)

Support Us
   
Magazine Subcription

काई नहीं है किसी सुपरफूड से कम

TreeTake is a monthly bilingual colour magazine on environment that is fully committed to serving Mother Nature with well researched, interactive and engaging articles and lots of interesting info.

काई नहीं है किसी सुपरफूड से कम

खेतों में खाद के रूप प्रयोग में लायी जाने वाली काई पोषण से युक्त मानी जा रही है...

काई नहीं है किसी सुपरफूड से कम

TidBit
तालाब या नदियों के पास हल्के बहाव वाले पानी के ऊपर दिखने वाली हरे रंग की परत जिसे हम काई यानी डकवीड्स के नाम से जानते है। वैज्ञानिक अब इसे सुपरफूड मान रहे हैं। और दावा कर रहे हैं कि यह मोटापा कम करने से लेकर डायबिटीज को कंट्रोल करने में भी लाभकारी है। पानी के भराव वाली जगह में चट्टानों में फिसलन भरी इस काई को वैज्ञानकि नए शोध में सेहत के लएि फायदेमंद मानते हैं। खेतों में खाद के रूप प्रयोग में लायी जाने वाली काई पोषण से युक्त मानी जा रही है। यह असल में एक जलीय पौधा है, जिसे हम अपनी नेकेड आई से केवल एक परत के रूप में ही देख पाते हैं। ताजा शोध इसे मनुष्यों की सेहत के लिए भी स्वास्थ्यवर्धक मान रहे हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में अब यह एक खास खाद्य उत्पाद बन गया है। आइए जानें इसके सेहत लाभ। डकवीड्स के सेहत लाभ मैनकई यानी डकवीड्स को विभिन्न शोधों ने पोषक तत्वों से भरपूर माना है। इसमें उतने प्रोटीन होते हैं, जितने अंडे में। इसके अलावा सभी जरूरी अमीनो एसिड भी इसमें मौजूद रहते हैं। डाइटरी फाइबर, विटामिन ए, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और विटामिन बी 12 के साथ ही इसमें लोहे और जस्ता जैसे महत्वपूर्ण खनिज तत्व, भी शामिल होते हैं। डायबिटीज के लिए सुपरफूड कई देशों में काई यानी डकवीड्स को डायबिटीज मरीजों के लिए कारगर दवा के रुप में देख रहे हैं। इससे मिलने वाला प्रोटीन डायबिटीज मरीजों के लिए किसी ‘सुपरफूड‘ से कम नहीं हैं। हाल ही में इजरायल में हुए नए शोध में डकवीड के प्रभावों का अध्ययन किया और पाया कि यह नया ‘सुपरफूड‘ ग्लाइसेमिक नियंत्रण प्रदान करके रक्त शर्करा यानी ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल करने में प्रभावी हैं। फाइबर से भरपूर डकवीड्स यानी काई का सेवन लोग शेक यानी जूस की तरह कर रहे हैं। ये फाइबर से भरपूर होता है। इसके सेवन से पेट देर तक भरा हुआ रहता है। जिससे फूड क्रेविंग को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। एक रिसर्च में सामने आया है कि डर्कवीड्स यानी काई में एक अंडे से भी ज्यादा प्रोटीन मौजूद होता है। हाई प्रोटीन के कारण इसे वेजेटेरियन मीट बॉल भी कहा जा रहा है। वेटलॉस करने में हेल्पफुल इसे वर्कआउट शेक की तरह भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह शाकाहारियों के लिए वजन कंट्रोल करने के लिए तैयार डाइट प्लान का बढ़िया हिस्सा है।
मखाना सेहत का खजाना
बढ़ती लागत और कम मुनाफा के चलते खेती से मुंह मोड़ रहे किसानों के लिए अच्छी खबर है। मखाना की खेती उनकी आर्थिक तस्वीर बदल सकती है। कृषि एक्सपर्ट्स की मानें तो इस फसल से एक हेक्टेयर में लगभग डेढ़ लाख रुपए का मुनाफा है। बिहार के मधुबनी और दरभंगा के किसानों के लिए मखाना की खेती वरदान बनी है। इसकी खेती जल जमाव वाली भूमि पर ही होती है। खेती को घाटे का सौदा मानकर निराश हो रहे किसानों के लिए मखाना की खेती मील का पत्थर साबित होगी। क्योंकि कम लागत में अच्छा मुनाफा, खपत और मार्केट रेट के हिसाब से प्रति हेक्टेयर लगभग डेढ़ लाख रुपए तक का मुनाफा है। जो अन्य किसी भी खेती में नहीं है। ऐसे में मखाने की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी और खेती छोड़ कर भाग रहे किसानों का पलायन भी रूकेगा। बिहार के दरभंगा और मधुबनी की तरह देवरिया जिला की मखाना का हब के रूप में चर्चित होगा और बेकार पड़ी जलमग्न जमीनों का उपयोग भी होने लगेगा। मखाने की खेती जलमग्न भूमि में होती है। नवंबर महीने में इसकी नर्सरी डाली जाती है। चार महीने बाद फरवरी और मार्च महीने में इसकी रोपाई की जाती है। मखाना की खेती के लिए हमेशा तीन से चार फीट पानी भरा रहना जरूरी है। रोपाई के लगभग 5 माह बाद पौधों में फूल लगने लगते हैं। अक्टूबर नवम्बर में इसकी कटाई शुरू होती है। इस तरह नर्सरी से लेकर कटाई तक इस सत्संग में लगभग 10 महीने का समय लगता है। हालांकि मखाने की कई ऐसी किसने भी हैं जो कम लागत और कम समय में अच्छा उत्पादन होता है। देवरिया जिला अच्छी वर्षा वाला जिला है और यहां के सभी ब्लॉकों में पानी की भरपूर उपलब्धता है। यहां की 30 फीसदी जमीन लगातार जलमग्न रहती है। यही नहीं दुनिया का 97 फीसदी मखाना यहां से दो सौ किलोमीटर दूर बिहार के दरभंगा वह मधुबनी जिला में पैदा होता है। यहां की जलवायु के हिसाब से मखाना की खेती के लिए अच्छी संभावनाएं हैं। ऐसे में कृषि विशेषज्ञों को बुलाकर इसकी खेती शुरू करने की तैयारी की जा रही है।
मिलावट का जमाना है
जीरा (बनउपद ेममके)ः जीरे की परख करने के लएि थोड़ा सा जीरा हाथ में लीजिए और दोनों हथेलयिों के बीच रगड़िए। अगर हथेली में रंग छूटे तो समझ जाइए क िजीरा मिलावटी है क्योंकि जीरा रंग नही छोड़ता। हींग (ंेमविजमकं)ः हींग की गुणवत्ता जांचने के लएि उसे पानी में घोलिए। अगर घोल दूधिया रंग का हो जाए तो समझिए कि हींग असली है। दूसरा तरीका है हींग का एक टुकड़ा जीभ पर रखें अगर हींग असली होगी तो कड़वापन या चरपराहट का अहसास होगा। लाल मिर्च पाउडर (ममक बीपससप चवूकमत)ः लाल मर्चि पाउडर में सबसे ज्यादा मिलावट की जाती है। इसकी जांच करने के लिए पाउडर को पानी में डालिए, अगर रंग पानी में घुले और बुरादा जैसा तैरने लगे तो मान लीजिए की मिर्च पाउडर नकली है। सौंफ और धनिया (मिददमस - बवतपंदकमत)ः इन दिनों मार्केट में ऐसी सौंफ और धनिया मिलता है जिस पर हरे रंग की पॉलिश होती है। ये नकली पदार्थ होते हैं, इसकी जांच करने के लिए धनिए में आयोडीन मिलाएं, अगर रंग काला हो जाए तो समझ जाइए कि धनिया नकली है। काली मिर्च (इसंबा चमचचमत)ः काली मिर्च पपीते के बीज जैसी ही दिखती है इसलएि कई बार मिलावटी काली मिर्च में पपीते के बीज भी होते हैं। इसको परखने के लएि एक गिलास पानी में काली मिर्च के दानें डालें। अगर दानें तैरते हैं तो मतलब वो दानें पपीते के हैं और काली मिर्च असली नहीं है। शहद (ीवदमल)ः शहद में भी खूब मिलावट होती है। शहद में चीनी मिला दी जाती है, इसकी गुणवत्ता जांचने के लिए शहद की बूंदों को गिलास में डालें, अगर शहद तली पर बैठ रहा है तो इसका मतलब वो असली है नहीं तो नकली है। देसी घी (बसंतपपिमक इनजजमत)ः घी में मिलावट की जांच करने के लिए दो चम्मच हाइट्रोक्लोरिक एसिड और दो चम्मच चीनी लें और उसमें एक चम्मच घी मिलाएं। अगर मश्रिण लाल रंग का हो जाता है तो समझ जाइए घी में मिलावट है। दूध (उपसा)ः दूध में पानी, मिल्क पाउडर, कैमिकल की मिलावट की जाती है। जांच करने के लिए दूध में उंगली डालकर बाहर निकाल लीजिए। अगर उंगली में दूध चिपकता है तो समझ जाइए दूध शुद्ध है। अगर दूध न चिपके तो मतलब दूध में मिलावट है। चाय की पत्ती (जमं समंअमें)ः चाय की जांच करने के लएि सफेद कागज को हल्का भिगोकर उस पर चाय के दाने बिखेर दीजिए। अगर कागज में रंग लग जाए तो समझ जाइए चाय नकली है क्योंकि असली चाय की पत्ती बिना गरम पानी के रंग नहीं छोड़ती। कॉफी (बवििमम)ः कॉफी की शुद्धता जांचने के लिए उसे पानी में घोलिए। शुद्ध कॉफी पानी में घुल जाती है, लेकिन अगर घुलने के बाद कॉफी तली में चिपक जाए तो वो नकली है!
 

Leave a comment