महà¥à¤† के फायदे तथा बेहतरीन औषधीय गà¥à¤£
महà¥à¤† के फूल की बहार मारà¥à¤š-अपà¥à¤°à¥ˆà¤² में आती है और मई-जून में इसमे फल आते हैं। इसके पेड़ के पतà¥à¤¤à¥‡, छाल, फूल, बीज की गिरी सà¤à¥€ औषधीय रूप में उपयोग की जाती है। इसके पतà¥à¤¤à¥‡ हथेली के आकार और बादाम के जैसे मोटे होते हैं। महà¥à¤† की लकड़ी बहà¥à¤¤ वजनदार और मजबूत होती है। इसे खेत, खलिहानों, सड़कों के किनारों पर और बगीचों में छाया के लिठलगाया जाता है। महà¥à¤† का फूल सफेद, कचà¥à¤šà¥‡ फल हरे रंग के और पकने पर पीले तथा सà¥à¤–ने पर लाल व हलके मटमैले रंग के हो जाते है। महà¥à¤† के फलों मे शहद जैसी महक होती है। इस पेड़ की तासीर ठंडी होती है। महà¥à¤† का पेड़ वात, गैस, पितà¥à¤¤ और कफ को शानà¥à¤¤ करता है और रकà¥à¤¤ को बढाता है। घाव को जलà¥à¤¦à¥€ à¤à¤°à¤¤à¤¾ है। यह पेट के विकारों को à¤à¥€ दूर करता है। यह खून में खराबी, सांस के रोग, टी.बी., कमजोरी, खाà¤à¤¸à¥€, अनियमित मासिक धरà¥à¤®, à¤à¥‹à¤œà¤¨ का अपचन सà¥à¤¤à¤¨à¥‹ मे दà¥à¤§ की कमी तथा लो-बà¥à¤²à¤¡ पà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤° आदि रोगो को दूर करता है। महà¥à¤† में कैलà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤®, आयरन, पोटॅश, à¤à¤¨à¥à¤œà¤¾à¤‡à¤®à¥à¤¸, à¤à¤¸à¤¿à¤¡à¤¸ आदि काफी मातà¥à¤°à¤¾ में होता है। पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में कà¥à¤·à¤¾à¤°à¤¾à¤, गà¥à¤²à¥‚कोसाइडà¥à¤¸, सेपोनिन तथा बीजों में 50-55 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ सà¥à¤¨à¤¿à¤—à¥à¤§ तेल निकलता है, जो मकà¥à¤–न जितना चिकना होता है। इसके फूलों में 60 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ शरà¥à¤•à¤°à¤¾ होती है। इसके फूलो के अंदर अतà¥à¤¯à¤‚त मीठा-गाà¥à¤¾, चिपचिपा रस à¤à¤°à¤ªà¥‚र होता है। मिठास के कारण मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ियाठइसे घेरे रहती हैं। फूलो के अंदर जीरे जैसे कई बीज होते है जो अनà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤—ी है। इसका पेड़ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, बिहार, मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, उड़ीसा, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ तथा महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में अपने आप ही उग जाता है तथा कà¥à¤› लोग इसकी खेती à¤à¥€ करते है। जहाठमहà¥à¤† के पेड़ बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में हैं, वहाठफूल परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤° में मिलते हैं। गरीब तथा आदिवासी लोग इनको इकटà¥à¤ ा कर लेते हैं। सà¥à¤–ाकर à¤à¥‹à¤œà¤¨ तथा अनà¥à¤¯ कई रूपों में इसका इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करते हैं। महà¥à¤† के फूलों का अधिक मातà¥à¤°à¤¾ मे सेवन करने से या इसके फूलो की महक देर तक सूंघने से मदहोशी, सिरदरà¥à¤¦ शà¥à¤°à¥ हो जाता है। परंतॠइस साइड इफेकà¥à¤Ÿ को दूर करने में धनिया का सेवन करना चाहिà¤à¥¤ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¿à¤• चिकितà¥à¤¸à¤¾ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में महà¥à¤† अनेक रोगों के सफल इलाज में कारगर है। कफजनà¥à¤¯ रोगों में यह बहà¥à¤¤ उपयोगी है। सरà¥à¤¦à¥€ की शिकायत में महà¥à¤ के फूलों का काà¥à¤¾ बनाकर सà¥à¤¬à¤¹-शाम सेवन करना चाहिठया फूलों को दूध में उबालकर पीना चाहिà¤, साथ ही फूले हà¥à¤ फूलों को अचà¥à¤›à¥€ तरह चबाकर खाना चाहिà¤à¥¤ महà¥à¤ के ताजा या सूखे फूल, लौंग, कालीमिरà¥à¤š, अदरक या सौंठइन सबको à¤à¤• जगह पीसकर इसका काà¥à¤¾ बनाà¤à¤à¥¤ हलका गरम काà¥à¤¾ पीकर कपड़ा ओà¥à¤•à¤° लेट जाà¤à¤à¥¤ इससे जà¥à¤•à¤¾à¤®-सरà¥à¤¦à¥€ में बड़ी राहत मिलती है। साथ ही सरà¥à¤¦à¥€ से होने वाला बà¥à¤–ार à¤à¥€ उतर जाता है। शरीर के किसी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤— में दरà¥à¤¦ हो, जोड़ों का, वायॠका दरà¥à¤¦ या मांसपेशियों में दरà¥à¤¦ अथवा पसलियों में दरà¥à¤¦ हो तो पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ अंग अथवा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर महà¥à¤ के तेल की मालिश कà¥à¤› दिनों तक करनी चाहिà¤à¥¤ किसी à¤à¥€ तेल की मालिश करने के बाद ठंडे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर न बैठे। जिन सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पीरियड समय पर न आकर आगे-पीछे आता हो अधिक कषà¥à¤Ÿà¤•à¤¾à¤°à¤• हो या कम-जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मातà¥à¤°à¤¾ में आता हो तो इसके आने के à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ पहले से महà¥à¤ के फूलों का काà¥à¤¾ बनाकर रोजाना सà¥à¤¬à¤¹ शाम सेवन करना चाहिà¤à¥¤ सà¥à¤¤à¤¨à¤ªà¤¾à¤¨ करानेवाली महिलाओं तथा नव पà¥à¤°à¤¸à¥‚ता सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में दूध न उतरता हो तो महà¥à¤ के ताजा फूलों का सेवन नियमित रूप से करना चाहिà¤à¥¤ ताजा फूल उपलबà¥à¤§ न रहने पर सà¥à¤–ाठहà¥à¤ फूल किशमिश की तरह चबाकर खाने चाहिà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ खाà¤à¤¸à¥€ के मरीजों को महà¥à¤† के फूल के 15-20 दाने à¤à¤• गिलास दूध में खूब उबालकर रात में सोने से पहले सेवन करने चाहिà¤à¥¤ फूलों के बीच से जीरे जैसे दानो को निकाल देना चाहिà¤à¥¤ दो सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ के लगातार सेवन से पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ खाà¤à¤¸à¥€ à¤à¥€ ठीक हो जाती है। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को सरà¥à¤¦à¥€ की शिकायत होती रहती है। इसमें नाक बहने लगती है। तथा पसलियाठà¤à¥€ चलने लगती हैं, इसके लिठपà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ या पूरे शरीर की महà¥à¤ के तेल से मालिश करनी चाहिà¤à¥¤ घर में महà¥à¤ का तेल अवशà¥à¤¯ रखना चाहिà¤à¥¤ साà¤à¤ª या विषैले कीड़े के काटने पर दंश सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर महà¥à¤† के फूलों को बारीक पीसकर लेप कर देना चाहिà¤à¥¤ इससे जहर का असर दूर हो जाता है। महà¥à¤† के फूलों का शहद (देसी) आà¤à¤–ों में लगाने से आà¤à¤–ों की सफाई हो जाती है। इससे आà¤à¤–ों की रौशनी बà¥à¤¤à¥€ है। आà¤à¤–ों की खà¥à¤œà¤²à¥€ तथा इनसे पानी आना बंद हो जाता है। यह शहद बहà¥à¤¤ गà¥à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ होता है। जिन बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के दाà¤à¤¤ निकल रहे हों, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह रोजाना चटाना चाहिà¤, इससे दाà¤à¤¤ आसानी से निकल आते हैं। महà¥à¤† की टहनी से दातून करने से दांत का हिलना बंद हो जाता है और मसूडो से खून आना बंद हो जाता है। गठिया के दरà¥à¤¦ मे महà¥à¤† की छाल को पिसकर, गरà¥à¤® कर इसका लेप करने पर गठिया रोग ठीक हो जाता है। बीजों से निकाला तेल खाना बनाने तथा साबà¥à¤¨ बनाने में उपयोगी है। इसकी खली को अचà¥à¤›à¥€ खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। फल का बाहरी à¤à¤¾à¤— सबà¥à¤œà¥€ बनाकर खाया जाता है। अंदर के à¤à¤¾à¤— को पीसकर आटा बना लिया जाता है। इसके फूलों से शराब बनाई जाती है जो à¤à¤• गैर कानूनी काम है। सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ की शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ से ही सबसे पहले जनजाति के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ महà¥à¤† के फूलों से देसी शराब का आविषà¥à¤•à¤¾à¤° किया गया था, जो की उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• औषधी के रà¥à¤ª में लिया जाता रहा है। सूखे फूल किशमिश के समान मिठाइयों, हलवा, खीर आदि वà¥à¤¯à¤‚जनों में à¤à¥€ डाले जाते है। फूलों को à¤à¤¿à¤—ोकर तथा बारीक पीसकर आटे के साथ गूंध लिया जाता है, फिर इसकी पूड़ियाठतली जाती हैं, जो बहà¥à¤¤ मीठी तथा सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ बनती हैं। पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ तथा बिहार में इसका काफी पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ है। महà¥à¤ से कफ सीरप तथा दूसरी कई दवाइयां बनाई जाती हैं।
दूब घास है à¤à¤• डिटॉकà¥à¤¸à¤¿à¤«à¤¾à¤¯à¤°
चिकितà¥à¤¸à¤¾ विशेषजà¥à¤žà¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दूब सà¥à¤µà¤¾à¤¦ में कड़वी होती है, लेकिन शरीर को ठंडक देती है। दूब के रस के सेवन से रकà¥à¤¤ विकार खतà¥à¤® होते हैं। दूब घास के रस से शरीर की जलन और गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में लगने वाली अधिक पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का निवारण होता है। गरà¥à¤à¤¸à¥à¤°à¤¾à¤µ की समसà¥à¤¯à¤¾ में हरी दूब घास के रस से बहà¥à¤¤ लाठहोता है। दूब घास का रस कफ पà¥à¤°à¤•à¥‹à¤ª को à¤à¥€ कम करता है। सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में शà¥à¤µà¥‡à¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¤° रोग में दूब घास के रस से बहà¥à¤¤ लाठहोता है। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡ में पथरी होने से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ दूब का रस सेवन करने से पथरी निकल जाती है। बेचैनी तथा जी मिचलाने में à¤à¥€ हरी दूब के रस से बहà¥à¤¤ लाठहोता है। दूब में विटामिन ‘ऒ और ‘सी’ परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ में होता है। दूब के रस के सेवन से आà¤à¤–ों की रोशनी में बहà¥à¤¤ लाठपहà¥à¤‚चता है। हरी मिरà¥à¤š, टमाटर, पà¥à¤¯à¤¾à¤œ व धनिये के साथ सलाद के रूप में दूब की हरी कोमल पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सेवन करने से अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤• ततà¥à¤¤à¥à¤µ शरीर को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। दूब घास का रस, कपड़े दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ छानकर बूंद-बूंद आà¤à¤–ों में डालने से जलन के होने वाली लालिमा ठीक होती है। जलोदर, मिरà¥à¤—ी, उनà¥à¤®à¤¾à¤¦, पैतà¥à¤¤à¤¿à¤• वमन,अधिक मातà¥à¤°à¤¾ में ऋतà¥à¤¸à¥à¤°à¤¾à¤µ होने पर दूब घास के रस के सेवन से बहà¥à¤¤ लाठहोता है। दूब घास शरीर में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‹à¤§à¤• कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ को बà¥à¤¨à¥‡ में मदद करती हैं। इसमें मौजूद à¤à¤‚टीवायरल और à¤à¤‚टीमाइकà¥à¤°à¥‹à¤¬à¤¿à¤² गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के कारण यह शरीर की किसी à¤à¥€ बीमारी से लड़ने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ को बà¥à¤¾à¤¤à¤¾ है। इसके अलावा दूब घास पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र होने के कारण शरीर को à¤à¤•à¥à¤Ÿà¤¿à¤µ और à¤à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ बनाये रखने में बहà¥à¤¤ मदद करती है। यह अनिदà¥à¤°à¤¾ रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में à¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤•à¤¾à¤°à¥€ है। सफेद दूब घास का रस 15 मिलीलीटर और कà¥à¤¶à¤¾ की जड़ को पीसकर, चावल के धोवन (मांड) के साथ मिलाकर सेवन करने से रकà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¤° रोग में बहà¥à¤¤ लाठहोता है। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡ में पथरी होने पर दूब घास का रस 15 मिलीलीटर मातà¥à¤°à¤¾ में सà¥à¤¬à¤¹-शाम सेवन करने से पथरी धीरे-धीरे खतà¥à¤® होने लगती है। दूब की जड़ को पीसकर दही में मिलाकर सेवन करने से पेशाब में रूकावट की विकृति नषà¥à¤Ÿ होती है। सफेद दूब और अनार की कली को रात के रखे पानी में à¤à¥€à¤—े चावलों के साथ पीसकर à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ तक सेवन करने से ऋतà¥à¤¸à¥à¤°à¤¾à¤µ की रूकावट ठीक होती है। दूब घास का रस जलोदर रोग से पीड़ित सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· को पिलाने से अधिक मूतà¥à¤° निषà¥à¤•à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ होने से रोगी को बहà¥à¤¤ लाठहोता है। दूब घास के कà¥à¤µà¤¾à¤¥ से कà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ करने से मà¥à¤‚ह के छालों में लाठहोता है। दूब घास à¤à¤• डिटॉकà¥à¤¸à¤¿à¤«à¤¾à¤¯à¤° के रूप में काम करती है जिससे शरीर से जहरीले ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ को à¤à¥€ निकालकर à¤à¤¸à¤¿à¤¡ को कम करती है। सिरदरà¥à¤¦ में दूब को पीसकर इसे चंदन की तरह माथे पर लगायें काफी आराम मिलेगा। दूब घास के रस में घिसा हà¥à¤† सफेद चंदन और मिसरी मिलाकर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ सà¥à¤¬à¤¹-शाम सेवन करने से सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का रकà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¤° रोग नषà¥à¤Ÿ होता है। दूब घास का रस बूंद-बूंद नाक में टपकाने से नाक से रकà¥à¤¤à¤¸à¥à¤°à¤¾à¤µ की विकृति में बहà¥à¤¤ लाठहोता है। दूब के रस में काली मिरà¥à¤š का चूरà¥à¤£ मिलाकर सà¥à¤¬à¤¹-शाम सेवन करने से शरीर के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ शोथों (सूजन) में बहà¥à¤¤ लाठहोता है। दूब घास का रस तिल के तेल में मिलाकर शरीर पर मलने और कà¥à¤› देर रà¥à¤•à¤•à¤° नहाने से खाज-खà¥à¤œà¤²à¥€ की बीमारी दूर होती है। दूब घास की जड़ को पीसकर जल में मिलाकर, थोड़ी-सी मिसरी डालकर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ सेवन करने से पथरी नषà¥à¤Ÿ होने लगती है। नियमित सेवन केवल आपके रकà¥à¤¤ में कोलेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‰à¤² के सà¥à¤¤à¤° को ही कम नहीं करती है, बलà¥à¤•à¤¿ आपके हृदय संबंधी फंकà¥à¤¶à¤¨ में à¤à¥€ सà¥à¤§à¤¾à¤° करती है। करीब 10 गà¥à¤°à¤¾à¤® ताजी दूब घास को पीसकर à¤à¤• गिलास पानी के साथ मिलाकर पी लेने से शरीर में नयी ताजगी का संचार करती है। हरी दूब कोमल व ताजी ही लेनी चाहिà¤à¥¤ हरी दूब हमेशा अचà¥à¤›à¥€ मिटà¥à¤Ÿà¥€ वाली जगह से लेनी चाहिà¤à¥¤ जड़ की ओर से हरी दूब को काटकर साफ पानी से धोने के बाद ही सेवन करना चाहिà¤à¥¤
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